18 October, 2021

तिलक कौनसी अंगुली से करना चाहिए Tilak konsi anguli se karna chahiye, क्या आप जानते है

तिलक कौनसी उँगली से करना चाहिए (Tilak konsi anguli se karna chahiye ), क्या आप जानते है ? तो आइये जानते है 

तिलक लगाने की परंपरा सनातन धर्म मे अनादि काल से चली आ रही है। सनातन परंपरा में अतिथियों का स्वागत तिलक लगाकर ही किया जाता रहा है। कोई भी मांगलिक कार्य हो या कोई पूजा हो उसमे भी तिलक का विशेष महत्व है।

तिलक क्या है Tilak Kya hai

चंदन केशर कुमकुम भस्म आदि से ललाट पर या माथे पर दोनों भौंहों के मध्य लगाए जाना वाला चिन्ह ही तिलक कहलाता है। यह तिलक अलग अलग वस्तु का या अलग अलग प्रकार का हो सकता है। विशेषतः कुमकुम का ही तिलक लगाया जाता है लेकिन कुमकुम के अलावा चंदन, केशर, भस्म, नदी तट की मिट्टी, चींटी की बाम्बी आदि का भी तिलक लगाया जा सकता है।

तिलक लगाने के स्थान कौन कौनसे है Tilak Lagane ke sthan kaun kaunse hai

तिलक माथे पर तो लगाया जाता है ही इसके अलावा ग्यारह ओर स्थान पर तिलक लगाया जाता है। शरीर के बारह स्थानों पर तिलक लगाये जाने का विधान है। सिर, ललाट, कंठ, हृदय, दोनों बाँहों में, नाभि, पीठ, दोनों बाहुमूल और दोनों कर्ण इन बारह स्थान पर तिलक लगाया जाता है।

तिलक लगाने का मंत्र Tilak Lagane ka mantra

तिलक लगाते समय इस मंत्र का उच्चारण अवश्य करना चाहिए

केशवानंद गोविंद वाराह पुरुषोत्तम।

पुण्यं यशस्यमायुष्यं तिलकं में प्रसीदतु।।

कान्ति लक्ष्मीं धृतिं सौख्यं सौभाग्यमतुलं बलम्।

ददातु चंदनं नित्यं सततं धारयाम्यहम्।।

तिलक कौनसी अंगुली से करना चाहिए Tilak konsi anguli se karna chahiye

तिलक लगाने में हाथ की सभी अंगुली (तर्जनी, मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठा) और अँगूठे का प्रयोग किया जाता है।

तर्जनी : पितृगणों अर्थात पिंड को तिलक करने के लिए दांये हाथ की तर्जनी अंगुली का उपयोग किया जाता है।

मध्यमा : स्वयं को तिलक लगाने के लिए दांये हाथ की मध्यमा अंगुली का प्रयोग किया जाता है।

अनामिका : भगवान एवं देवताओ को तिलक लगाने के लिए अनामिका अंगुली का प्रयोग किया जाता है।

कनिष्ठा : भाई दूज पर भाई को बहन के द्वारा तिलक लगाने के लिए कनिष्ठा अंगुली का उपयोग किया जाता है।

अँगूठा : ब्राह्मण और अतिथियों को तिलक लगाने के लिए अँगूठे का प्रयोग किया जाता है। सनातन धर्म में ब्राह्मणों और अतिथियों को देवताओं के समान माना गया है अतः उनको तिलक लगाते समय अनामिका उँगली से एक बिंदी लगाने के बाद अगूंठे से तिलक लगाना चाहिए और अंगूठे को दो बार फैरना चाहिए।

क्षत्रिय को कौनसा तिलक लगाना चाहिए Kshatriya ko kaunsa Tilak Lagana Chahiye

क्षत्रिय लाल रंग का तिलक लगाना चाहिए क्योंकि ये देवी के उपासक होते हैं। प्रारम्भ से ही क्षत्रिय युद्ध का प्रतिनिधित्व करते आ रहे है और लाल रंग शौर्य का प्रतीक है, इसीलिये क्षत्रिय को लाल रंग का ही तिलक लगाना चाहिए।

ब्राह्मण को कौनसा तिलक लगाना चाहिए  Brahaman ko kaunsa Tilak Lagana Chahiye

अनादि काल से ही ब्राह्मण शांति और पवित्रता के प्रतीक रहे हैं इसीलिये ब्राह्मणों को सफेद चंदन का तिलक लगाना चाहिए।

वैश्य को कौनसा तिलक लगाना चाहिये Veshya ko kaunsa Tilak Lagana Chahiye

वैश्य समाज के लोग कारोबार करने वाले होते है इसलिए उन्हें पीले रंग का तिलक लगाना चाहिए क्योंकि पीला रंग तरक्की का परिचायक है।

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06 October, 2021

शबरी अपने विवाह के दिन क्यो भाग गयी थी / Shabri apne vivah ke din kyo bhag gayi thi क्या आप जानते हैं

शबरी अपने विवाह के दिन क्यो भाग गयी (Shabri apne vivah ke din kyo bhag gayi thi)

शबरी और भगवान ram

शबरी के पिता एक भील कबिले के राजा थे और उनकी पुत्री श्रमणा (शबरी) एक राजकुमारी थी तो उसी अनुसार उनका विवाह एक भील कुमार से तय हुआ था। उनके पिता राजा थे तो उनके विवाह की तैयारियां जोर शोर से की गई थी। उनके विवाह में भोज के लिए सैकड़ो भैंसे और बकरे बलि के लिए लाए गए थे।

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विवाह के एक दिन पहले उन्होंने इतने भैंसे और बकरे देखे तो जिज्ञासावश पूछा कि इतने पशु को क्यों लाया गया है तब बताया कि ये उनके विवाह में बारातियों और अन्य लोगों के भोजन के लिए इनकी बलि दी जाएगी।

राजकुमारी श्रमणा नेकदिल और दयालु प्रवर्ति की थी अतः ये सुनकर वे बहुत आहत हुई कि उनके विवाह के लिए इन बेजुबान पशुओं की बलि दी जाएगी। शबरी का मन करुणा से भर गया वह सोचने लगी कि यह कैसा विवाह जिसमें इतने पशुओं कि बलि दी जाएगी इससे तो विवाह न करना ही अच्छा है। यही सोचकर वह अपनी शादी के एक दिन पहले रात्रि में उठकर जंगल में भाग गयी।

सारी उम्र शबरी अविवाहित रही और मतंग ऋषि एवं अन्य ऋषि मुनियों की सेवा करती रही। वह दिन रात भगवान श्रीराम की भक्ति में लीन रहती थी जिसके फलस्वरूप भगवान श्रीराम स्वयं उनको दर्शन देने आए थे।

भगवान राम को शबरी को क्यो देने पड़े दर्शन (Bhagwan Ram ko shabri ko kyo dene pade darshan)

अपने भगवत अनुराग के कारण भगवान श्री राम को शबरी को दर्शन देने आना पड़ा। शबरी ने आजीवन भगवान राम की प्रतीक्षा की और नित्य वह जंगल से ताजे फूल लाकर भगवान श्रीराम के आने के लिए उन्हें राह में बिछाती थी। रामजी के भोजन के लिए वह नित्य मीठे बैर भी लेकर आती थी। इतने लंबी कठिन तपस्या का ही फल था कि भगवान को दर्शन देने आना पड़ा। भगवान श्रीराम ने न केवल शबरी को दर्शन दिए बल्कि उनके झूठे बैर भी खाए थे। 

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शबरी का सही नाम या असली नाम क्या था ? Shabri Real Name

माता शबरी का असली नाम श्रमणा था और वे भील समुदाय की राजकुमारी थीं।

 

शबरी नाम क्यो पड़ा ? Shabri naam kyo pada

भील समुदाय में एक जाति होती है शबर जाति, माता शबरी इसी जाति से संबंध रखती थी इसी कारण उनका नाम शबरी हुआ। इस बारे में कुछ लोगों का मत यह भी है कि माता शबरी ने भगवान श्री राम के दर्शन के लिए बहुत ही सब्र किया था इस कारण भी उन्हें शबरी कहा जाता है।

शबरी के माता पिता कौन थे ? Shabri ke Mata Pita kaun the

शबरी के पिता भील जाति के एक कबीले के राजा थे। शबरी के पिता का नाम अज और माता का नाम इंदुमती था।

 

शबरी का जन्म कब हुआ था ? Shabri ka janm kab hua tha

माता शबरी का जन्म फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को हुआ था। प्रति वर्ष इसी तिथि को माता शबरी की जयंती मनाई जाती है जिसे शबरी जयंती के नाम से जाना जाता है।

 

शबरी कौनसी जाति की थी ? Shabri kaunsi jati ki thi

शबरी भील समुदाय की शबर जाति की थी। 

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राम ने शबरी को क्या कहा था ? Ram ne Shabri se kya kaha

मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने शबरी को "भामिनी" कहकर संबोधित किया था । भामिनी का अर्थ अत्यंत आदरणीय स्त्री होता है और शबरी बहुत ही आदरणीय स्त्री थी। शबरी के बैर खाने के बाद भगवान श्री राम ने कहा कि भामिनी में प्रेम और भक्ति के रिश्ते को मानता हूँ , तुम कौन हो, किस वर्ण से हो, किस कुटुंब से हो, यह सब मायने नहीं रखते।

 

शबरी आश्रम कहाँ है ? Shabri Ashram kaha he

माता शबरी का आश्रम छत्तीसगढ़ राज्य के जांजगीर-चांपा जिले के शिवरीनारायण में महानदी, जोंक और शिवनाथ नदी के तट पर स्थित है। यह शबरीधाम और यहां पर बना हुआ मंदिर प्रकृति के खूबसूरत नजारों से घिरा हुआ है जो यहां आने वाले राहगीरों का मन मोह लेता है।

 

शबरी किस ऋषि की शिष्या थी ? Shabri kis Rishi ki Shishya thi

माता शबरी दंडकारण्य वन में रहने वाले मातंग ऋषि की शिक्षा थी। मतंग ऋषि का जब अंतिम समय निकट था तब उन्होंने ही माता शबरी को प्रभु श्री राम की प्रतीक्षा करने के लिए कहा था।

 

शबरी पुर्व जन्म में कौन थी ? Shabri purv Janm me kaun thi

शबरी अपने पूर्व जन्म में एक रानी थी और उनका नाम परमहंसिनी था। अपने पूर्व जन्म में शबरी ने त्रिवेणी तट पर माँ गंगा में जल समाधि ली थी।

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शबरी ने राम लक्ष्मण को क्या सलाह दी थी ? Shabri ne Ram Laxman ko kya salah di thi

शबरी ने भगवान श्री राम और लक्ष्मण को पम्पा सरोवर की और जाने की सलाह दी थी। शबरी ने कहा था कि वहाँ आपको वानर नरेश महाराज सुग्रीव मिलेंगे जिनकी सहायता से आप माता सीता की खोज शीघ्र कर सकते हैं।


30 September, 2021

तिलक लगाने के बाद क्यों फेंके जाते है आस पास चावल Tilak lagane ke baad kyo fenke jate he aas pas Chawal

"तिलक लगाने के बाद क्यों फेंके जाते हैं आस पास चावल" Tilak lagane ke baad kyo fenke jate he aas pas Chawal प्रायः ये सवाल सभी के मन मे आता ही है, तो आइए जानते हैं कि ऐसा क्यों करते हैं
 

सनातन धर्म में चावल का विशेष महत्व है। प्रायः देखा जाता है कि जब भी कोई धार्मिक कार्य या शुभ कार्य किया जाता है तो उसमें चावल का उपयोग अनिवार्यतः किया जाता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि चावल सबसे शुद्ध अन्न है। भगवान के भोग में भी अधिकांशतः चावल का उपयोग होता है। यज्ञ और हवन करते समय भी देवी देवताओं का चावल ही चढ़ाया जाता है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि चावल चढ़ाने से देवी देवता जल्दी प्रसन्न होते हैं।

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चावल को अक्षत भी कहा जाता है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है "कभी नष्ट न होने वाला" । ऐसी मान्यता भी है कि चावल के उपयोग से सभी कार्य विघ्न रहित होते हैं।

कच्चे चावल को सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है यही वजह है कि तिलक लगाने के बाद ललाट पर चावल लगाए जाते हैं और लगाने वाले के ऊपर और उसके एवं अपने आस पास चावल फेंके जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि आस पास चावल फैंकने से वहाँ उपस्तिथ सारी नकारात्मक ऊर्जा सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित हो जाए और हम सकारात्मक विचारों के साथ जीवन जिये।
 
 
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22 September, 2021

ध्रुव तारा (Dhruv Tara) देखकर ही क्यों चलते थे पहले नाविक और यात्री

ध्रुव तारा क्या है Dhruv tara kya he/ ध्रुव तारा किसे कहा जाता है 

ध्रुव तारा Dhruv Tara

ध्रुव तारा ध्रुवमत्स्य तारामंडल का सबसे अधिक चमकीला और अधिक रोशनी देने वाला तारा है, जो तारामंडल में स्थिर दिखाई देता है। ध्रुव तारा पृथ्वी से दिखाई देने वाला 45वाँ सबसे रोशन तारा है जो पृथ्वी से लगभग 433 प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित है।
 
 

ध्रुव तारा कितने बजे निकलता है / ध्रुव तारा कितने बजे दिखाई देता है

ध्रुव तारा रात्रि में 10.11 के बाद सभी स्थानों से दिखाई देता है जो प्रातःकाल तक सप्तऋषि मंडल के आधार पर देखा जा सकता है।

ध्रुव तारा किस दिशा में दिखाई देता है

ध्रुव तारा उत्तर दिशा में दिखाई देता है, उसी के कारण ही उत्तर दिशा का निर्धारण किया जाता है। ध्रुव तारा उत्तर दिशा का ज्ञान देता है।

पृथ्वी से ध्रुव तारा की दुरी

पृथ्वी से ध्रुव तारे की दूरी लगभग 433 प्रकाश वर्ष है। ध्रुव तारा बहुत ही चमकीला तारा है इस कारण पृथ्वी से दूर होने पर भी स्पष्ट दिखाई देता है। ध्रुव तारा आकार में बहुत बड़ा होने के कारण खगोलशास्त्री इसे रोशनी वाला महा दानव तारा भी कहते हैं।

ध्रुव तारा क्यों स्थिर प्रतीत होता है / ध्रुव तारा स्थिर क्यों है

पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगाने के साथ साथ अपनी धुरी पर भी अनवरत रूप से घूमती है। पृथ्वी जिस धुरी पर घूमती है उसका एक सिरा उत्तरी ध्रुव है और दूसरा सिरा दक्षिणी ध्रुव है। यदि इस धुरी से एक समानांतर रेखा खींची जाए तो वह रेखा ध्रुव तारे तक जाएगी, यही कारण है कि ध्रुव तारा हमेशा स्थिर प्रतीत होता है या स्थिर दिखाई देता है।

ध्रुव तारे को ही देखकर क्यों चलते थे नाविक और यात्री



ध्रुव तारा खगोलीय गोले के उत्तरी ध्रुव के निकट स्थित है जिससे दुनिया के अधिकत्तर स्थानों से ध्रुव तारा पृथ्वी के ऊपरी ध्रुव के ऊपर स्थित प्रतीत होता है। पृथ्वी के घूर्णन के कारण रात्रि में आसमान में सभी तारे घूमते हुए प्रतीत होते हैं, लेकिन एकमात्र ध्रुव तारा ही उत्तर की ओर स्थिर प्रतीत होता है।
इसी कारण पहले समुंद्री नाविक और यात्री ध्रुव तारे को देखकर चलते थे जिससे उन्हें उनकी दिशा का सही ज्ञान रहता था।
 
 

ध्रुव तारे के अन्य नाम / ध्रुव तारे को अंग्रेजी में क्या कहते है

ध्रुव तारे को अंग्रेजी में पोलैरिस (Polaris), पोलस्टार (Polestar), नॉर्थ स्टार (North Star) और लोडस्टार (Lodestar) कहते हैं।
ध्रुव तारे को अरबी भाषा में नजुम अल शुमाल (نجم الشمال ) कहते हैं जिसका अर्थ है उत्तर का तारा। वहीं फारसी में इसे कुतुबी सितारा (قطبی ستارہ‎) कहते हैं।
 

11 August, 2021

क्या क्या आता है सोलह श्रृंगार में, क्या आप जानते हैं इनका वैज्ञानिक महत्व

हिंदू महिलाओं के लिए सोलह श्रृंगार का विशेष महत्व है। एक स्त्री विवाह पूर्व श्रृंगार तो करती है लेकिन वह विवाह के पूर्व सोलह श्रृंगार नहीं कर सकती है, क्योंकि सोलह श्रृंगार में किए जाने वाले कुछ श्रृंगार विवाह के उपरांत ही संभव हैं।

विवाह के बाद स्त्री इन सभी चीजों को अनिवार्य रूप से धारण करती है। सोलह श्रृंगार में शामिल हर एक श्रृंगार का अलग ही महत्व है। हर स्त्री चाहती है कि वह सज धज कर सुंदर लगे, सोलह श्रृंगार स्त्री के रूप को और भी अधिक सुंदर और जवान बना देता है वही सोलह श्रृंगार के वैज्ञानिक कारण भी है।

महिलाओं के सोलह श्रृंगार कौन-कौन से हैं / सोलह श्रृंगार के नाम

महिलाओं द्वारा किए जाने वाले सोलह श्रृंगार में सिंदूर, बिंदी, पायल, शादी का जोड़ा, मांग टीका, मेहंदी, बाजूबंद, कमरबंद, मंगलसूत्र, बिछिया, कर्णफूल, नथ, अंगूठी, गजरा, काजल एवं चूड़ियां है।

यहां जानिए कौन-कौन से हैं सोलह श्रृंगार और उनके महत्व Scientific Reasons behind 16 Shringar

1. सिंदूर

सिंदूर विवाह के उपरांत स्त्रियां अपनी मांग में लगाती है जिसे विवाहित स्त्रियों के सुहाग की निशानी माना जाता है। मान्यता है कि सिंदूर लगाने से विवाहित स्त्री के पति की आयु में वृद्धि होती है। इसका प्रसंग रामायण काल में भी मिलता है जहां माता सीता को सिंदूर लगाते हुए देखकर महाबली हनुमान माता सीता से पूछते हैं कि यह सिंदूर लगाने से क्या होता है, तो माता सीता कहती है कि यह सिंदूर लगाने से आपके स्वामी भगवान श्री राम की आयु बढ़ती है। इसी के चलते महाबली हनुमान ने अपनी पूरी काया सिंदूर में रंग दी थी।

वैज्ञानिक तर्क : वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार सिंदूर महिलाओं के रक्तचाप को नियंत्रित करता है। वही स्त्रियों के शारीरिक तापमान को नियंत्रित कर उन्हें ठंडक देता है और उन्हें शांत रखता है।

स्त्रियों द्वारा जिस स्थान पर सिंदूर लगाया जाता है उस स्थान पर मस्तिष्क की बहुत ही महत्वपूर्ण ग्रंथि होती है। इस स्थान पर सिंदूर लगाने से उनका मस्तिष्क चैतन्य रहता है।

2. बिंदी


सोलह श्रृंगार में बिंदी का बहुत ही महत्त्व है इसे लगाने से सुंदरता तो बनी रहती है साथ ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। शास्त्रों के अनुसार बिंदी को घर, परिवार, सुख समृद्धि का प्रतीक माना जाता है ऐसी मान्यता है कि इसे लगाने से घर में सुख समृद्धि बनी रहती है।

वैज्ञानिक तर्क : सिर के जिस स्थान पर बिंदी लगाई जाती है उस स्थान पर आज्ञा चक्र होता है जिससे इस स्थान पर बिंदी लगाने से मन की एकाग्रता बनी रहती है साथ ही आज्ञा चक्र भी सक्रिय होता है जो ऊर्जावान बनाए रखने में सहायक है।

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3. मंगलसूत्र

सोलह श्रृंगार में उपयोग की जाने वाली वस्तुओं में एक वस्तु मंगलसूत्र है जिसे विवाह के उपरांत ही धारण किया जा सकता है। मान्यता के अनुसार एक विवाहित स्त्री अपने पति की लंबी आयु और जीवन रक्षा के लिए इसे धारण करती है। कहा जाता है कि इसे धारण किए रहने से पति और पत्नी के मध्य अच्छा तालमेल रहता है साथ ही अनेक बाधाएं दूर होती है।

4. शादी का जोड़ा

विवाह के समय कन्या जो वस्त्र धारण करके विवाह जैसे पवित्र बंधन में बंधती है वह वस्त्र भी सोलह श्रृंगार में शामिल है। इन वस्त्रों को ही शादी का जोड़ा कहा जाता है। यह वस्त्र लाल रंग के होते हैं जिनमें लाल ओढ़नी, लाल चोली और लाल घाघरा होता है। यह लाल रंग के वस्त्र पवित्रता के प्रतीक है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार लाल रंग शुभ मंगल और सौभाग्य का प्रतीक है इसीलिए स्त्रियों द्वारा शुभ कार्यों में लाल रंग का सिंदूर कुमकुम शादी का जोड़ा आदि का प्रयोग किया जाता है

वैज्ञानिक तर्क : यदि वैज्ञानिक मान्यताओं की बात करें तो उनके अनुसार लाल रंग शक्तिशाली एवं प्रभावशाली है जिससे एकाग्रता बनी रहती है। लाल रंग व्यक्तियों की भावनाओं को नियंत्रित कर स्थिरता प्रदान करता है।

5. चूड़ियां


सोलह श्रृंगार की वस्तु में चूड़ियां भी अपना विशेष महत्व रखती है यह चूड़ियां स्वर्ण, चांदी, लाख, कांच आदि अन्य धातु की बनी हुई हो सकती है। स्त्रियों के लिए चूड़ियां पहनना अनिवार्य है विवाह के बाद तो यह चूड़ियां सुहाग की निशानी मानी जाती है।

वैज्ञानिक तर्क : वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार चूड़ियां महिलाओं के रक्त परिसंचरण में सहायक होती है साथ ही चूड़ियो की ध्वनि स्त्रियों की हड्डियों को मजबूत करने में सहायक है। सोने या चांदी की चूड़ियां पहनने से यह लगातार त्वचा के संपर्क में रहती है जिससे इनको पढ़ने वाली स्त्रियों को सोने व चांदी के गुण प्राप्त होते हैं जो स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद है।

जीव के उत्पति क्रम मे हुए थे भगवान विष्णु के दशावतार , जानकर चौंक जाएंगे  

6. अँगूठी

अंगूठी को भी सोलह श्रृंगार में जगह दी गई है जिसे हाथों की उंगलियों में पहना जाता है। प्राचीन काल से ही उंगली में अंगूठी पहनने की परंपरा चली आ रही है। सोलह श्रृंगार में विशेषत: स्वर्ण या चांदी की अंगूठी पहनी जाती है लेकिन यह ताम्र, अष्टधातु या पीतल आदि धातु की भी हो सकती है

वैज्ञानिक तर्क : वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार हाथों की उंगलियों की नसें सीधे मस्तिष्क व हृदय से जुड़ी होती है इन पर प्रेशर पढ़ने से ह्रदय व दिमाग स्वस्थ रहता है।

अंगूठी उंगलियों की त्वचा से स्पर्श होती रहती है इससे इन धातुओं के गुण तो प्राप्त होती हैं साथ ही या अंगूठी हाथों की उंगलियों में निरंतर प्रवाहित होने वाले रक्त संचार को भी नियंत्रित करती है।

7. पायल

सोलह श्रृंगार में शामिल किए गए श्रृंगार में एक श्रृंगार पायल भी है जिसे पैरों में पहना जाता है। अधिकांशत यह पायल चांदी के बने हुए होते हैं । भारत के अनेक क्षेत्रों में पायल को पायजेब और घुंगरू भी कहा जाता है। पायल के घुंघरू की आवाज से वातावरण सकारात्मक बना रहता है।

वैज्ञानिक तर्क : वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनुसार देखा जाए तो चांदी की पायल महिलाओं को जोड़ो व हड्डियों के दर्द से राहत देती है।

8. कमरबंद 

नाम से ही स्पष्ट है कि कमर में धारण किए जाने वाले आभूषण को कमरबंद कहा जाता है जिसे सोलह श्रृंगार में शामिल किया गया है। अनादि काल से विवाह के बाद स्त्रियां कमरबंद को अनिवार्य रूप से धारण करती थी अभी स्त्रियां केवल विवाह के समय और विशेष कार्यक्रम के समय ही धारण करती है। यह कमरबंद स्वर्ण और चांदी के बने हुए होते हैं।

वैज्ञानिक तर्क : वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार स्त्रियों द्वारा चांदी का कमरबंद पहनने से उनको महावारी व गर्भावस्था के दौरान होने वाले दर्द में राहत मिलती है।

9. बिछिया

स्त्रियों के द्वारा पैरों की उंगलियों में पहने जाने वाले आभूषण को बिछिया कहा जाता है जो रिंग या छल्ले की तरह होती है। बिछिया को भी सोलह श्रृंगार में शामिल किया गया है।

वैज्ञानिक तर्क : वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार महिलाओं के पैरों की उंगलियों की नसें उनके गर्भाशय से जुड़ी हुई होती है, बिछिया पहनने से उनको गर्भावस्था व गर्भाशय से जुड़ी समस्याओं में राहत मिलती है।

10. मांग टीका

सोलह श्रृंगार में शामिल किया गया एक श्रृंगार मांग टीका है जिसे स्त्रियां अपने माथे पर मांग के बीच में लगाती है। यह मांग टीका स्वर्ण या चांदी की धातु का बना हुआ होता है। यह टीका स्त्रियों को अपने पति के द्वारा प्रदान किए गए सिंदूर का रक्षक होता है।

वैज्ञानिक तर्क : वैज्ञानिक मान्यता के अनुसार मांग टीका महिलाओं के शारीरिक तापमान को नियंत्रित करता है जिससे उनकी सूझबूझ व निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है।

11. काजल


सोलह श्रृंगार में शामिल एक श्रृंगार काजल है। काजल आंखों की सुंदरता बढ़ाने के लिए आंखों में लगाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि काजल लगाने से स्त्रियों को बुरी नजर नहीं लगती है साथ ही आंखों से संबंधित अनेक बीमारियों से बचाव होता है।

वैज्ञानिक तर्क : वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार काजल आंखों को शीतलता प्रदान करता है। आंखों में काजल लगाने से नुकसान दायक सूर्य की किरणों से और धूल मिट्टी आदि से आंखों का बचाव होता है।

12. बाजूबंद

सोने चांदी के बने कड़े जिन्हें स्त्रियां अपने बाजू में धारण करती है उन्हें ही बाजूबंद कहा जाता है। बाजूबंद को भी सोलह श्रृंगार में शामिल किया गया है। यह आभूषण भी स्त्रियों की त्वचा से लगातार संपर्क में रहता है जिससे इन धातुओं के गुण स्त्रियों को प्राप्त होते रहते हैं जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।

वैज्ञानिक तर्क : वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार बाजूबंद स्त्री की बाजू पर सही दबाव डालकर रक्त संचार बढ़ाने में मददगार है।

शिखा यानी चोटी रखने के कारण, ये हे शिखा रखने के वैज्ञानिक महत्त्व 

13. कर्णफूल

स्त्रियों द्वारा कानों में पहने जाने वाले झुमके कुंडल भी सोलह श्रृंगार का महत्वपूर्ण अंग है। कानों में धारण किए जाने वाले झुमके, कुंडल को ही कर्णफूल कहा जाता है जो सोने या चांदी की धातु के बने हुए होते हैं।

वैज्ञानिक तर्क : वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार कान पर बहुत सारे एक्यूपंक्चर और एक्यूप्रेशर पॉइंट होते हैं जिन पर सही दबाव दिया जाए तो वह स्त्रियों को होने वाले माहवारी दर्द में राहत प्रदान करते हैं। कर्णफूल उन्हीं प्रेशर पॉइंट्स पर दबाव डालते हैं। कान छेद होने से स्त्रियों को स्वास्थ्य संबंधी अनेक लाभ प्राप्त होते हैं क्योंकि कान की नसें स्त्री की नाभि से लेकर पैर के तलवे तक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

14. मेहँदी

स्त्री के लिये मेहँदी को भी अनिवार्य श्रृंगार माना गया है, मेहँदी भी सोलह श्रृंगार में से एक है। कोई भी मांगलिक कार्य हो उसमें स्त्रियां अपने हाथों और पैरों में मेंहदी रचाती है। ऐसी मान्यता भी है कि विवाह उपरांत स्त्री के हाथों में मेहँदी जितनी ज्यादा अच्छी रचती है उसका पति उससे उतना ही प्यार करने वाला होता है।

वैज्ञानिक तर्क : वैज्ञानिक मान्यता के अनुसार मेहँदी स्त्रियों में त्वचा से संबंधित अनेक रोगों में औषधि का कार्य करती हैं। मेहँदी की खुशबू और ठंडक स्त्री को खुश व ऊर्जावान बनाये रखती है।

15. नथ

सोलह श्रृंगार में एक श्रृंगार नथ भी है, जिसे स्त्रियों द्वारा नाक पर धारण किया जाता है। नथ धारण करने से स्त्रियों की सुंदरता में चार चाँद तो लगते ही है साथ ही इसे धारण करने से स्त्रियों को एक्यूप्रेशर के लाभ मिलते हैं और स्वास्थ्य ठीक रहता हैं।

16. गजरा

स्त्रियों द्वारा श्रृंगार के समय बालों में जो फूलों का गुच्छा लगाया जाता है, उसे ही गजरा कहा जाता हैं। गजरे को भी सोलह श्रृंगार में शामिल किया गया है जो चमेली के सुगंधित फूलों से बनाया जाता है। गजरे के फूलों की सुगंध मन को तरोताजा और ठंडा रखती हैं, साथ ही घर को सुगंधित और पवित्र बनाती हैं।

वैज्ञानिक तर्क : वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार चमेली के फूलों की महक हर किसी को अपनी और आकर्षित करती है एवं चमेली के फूलों की सुगंध तनाव को दूर करने में सबसे ज्यादा सहायक हैं।

सोलह श्रृंगार के नाम Names of sixteen Makeup

1. Vermilion सिंदूर

2. Bindi बिंदी

3. Anklet पायल

4. Wedding dress शादी का जोड़ा

5. Mang Tika माँग टीका

6. Armlets बाजूबंद

7. Waistband कमरबन्द

8. Henna मेहँदी

9. Mangal sutra मंगलसूत्र

10. Toe Ring बिछियां

11. Ear Flower कर्णफूल

12. Nose Ring नथ

13. Ring अँगूठी

14. Gajra गजरा

15. Kajal काजल

16. Bangles चूड़ियाँ

21 January, 2021

कब करनी चाहिए पूजा, पूजा करते समय रखें इन बातो का ध्यान

पूजा क्या है

अपने इष्ट या भगवान को प्रसन्न करने एवं उनका आशीर्वाद और उनकी कृपा अपने ऊपर बनाए रखने के लिए किया जाने वाला उनका अभिवादन पूजा कहलाता है। पूजा दैनिक जीवन का मानसिक और शारीरिक क्रियाओं द्वारा किया जाने वाला शांतिपूर्ण एवं अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य है। पूजा अपने इष्ट के समीप होने का एहसास करने की एक सरल कर्मकांडी विधि है जो हमें कुछ समय के लिए सांसारिक जीवन की गतिविधियों से परे कर एक अलग ही आध्यात्मिक संसार में पहुंचा देती है जहां तन्मयता, पवित्रता और बहुत ही शांति देने वाला तथा तृप्त कर देने वाला मनोभाव होता है। पूजा में वेद और पुराणों से लिए हुए श्लोकों का उपयोग किया जाता है एवं भगवान को पुष्प, भोग आदि समर्पित किया जाता है। पूजा तन मन और धन से निर्विकार होकर अपने प्रभु को स्वयं को पूर्ण रूप से सौंपते हुए की जाती है।

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सुबह पूजा करने के फायदे

वैसे तो भगवान की सच्चे मन से कभी भी पूजा की जा सकती है लेकिन ब्रह्म मुहूर्त में पूजा करना अपने आप में एक विशेष फल देने वाला होता है। सुबह जल्दी उठकर पूजा करने से भी बात पूजा और सकारात्मकता बनी रहती है।

सुबह के समय हम नींद से जागने के बाद थकान से दूर होते हैं तथा इस समय हमारा मन सबसे ज्यादा शांत रहता है। सुबह के समय अनावश्यक शोरगुल नहीं होता है तथा वातावरण में भी पर्याप्त शुद्धता रहती है जिससे पूजा में ध्यान रहता है। पूजा करते समय भगवान का ध्यान, मंत्रों का उच्चारण और जाप आदि करना होता है इनके लिए सुबह का समय श्रेष्ठतम है। 

भगवान की पूजा करने के लिए जरूरी है कि हम मन से एकाग्र रहे और हमारा पूरा मानसिक और शारीरिक ध्यान पूजा में रहे इसलिए पूजा सुबह के समय करें क्योंकि सुबह के समय हमारे दिमाग में इधर-उधर के व्यर्थ विचार नहीं होते हैं ।

दिन भर में अथोर्पार्जन और जीवोर्पार्जन के लिए हम मानसिक और शारीरिक रूप से कई कार्य करते रहते हैं जिससे मन में बहुत सारे विचार चलते रहते हैं। सुबह के समय है हमारा मन चंचल ना होकर शांत और स्थिर रहता है।

सुबह कितनी बजे पूजा करनी चाहिए

सुबह के समय पूजा को लेकर अनेक विद्वानों के अलग-अलग मत है लेकिन इन सभी में ब्रह्म मुहूर्त में पूजा करना का समय समान है। पूजा करने का सही समय तो सुबह ब्रह्म मुहूर्त में ही है जो सुबह 4:00 बजे के बाद लग जाता है। 4:00 बजे से लेकर 5:00 बजे के बीच की गई पूजा का विशेष फल प्राप्त होता है। यदि आप इस समय में पूजा नहीं कर पाते हैं तो भी कोई बात नहीं लेकिन 10:00 बजे से पहले पहले आप की पूजा हो जानी चाहिए। संभवतः पूजा सूर्योदय से पहले हो जाए तो काफी बेहतर है, ताकि सूर्योदय के समय सूर्य देव को जल चढ़ाया जा सके।

क्या दोपहर में पूजा करनी चाहिए

दोपहर का समय भगवान के शयन का समय होता है इसी कारण  मंदिरों में इस समय भगवान के पर्दे लगे होते है एवं मंदिर के पट बंद होते हैं। दोपहर के समय भगवान की पूजा करने पर पूजा का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता है। दोपहर के समय व्यक्ति के मन में कई प्रकार के विचार चलते रहते हैं जिससे वह एकाग्र चित्त होकर पूजा नहीं कर पाता है। यदि अतिआवश्यक ना हो तो दोपहर के समय पूजा करने से बचना चाहिए क्योंकि दोपहर का समय भगवान के शयन का समय होता है।

दोपहर का समय पितरों की पूजा के लिए शुभ माना जाता है, पितृपूजा का पूर्ण फल प्राप्त करने के लिए उनकी पूजा दोपहर 12 बजे से 4 बजे के मध्य करनी चाहिए।

 शाम को कितनी बजे पूजा करनी चाहिए

शाम को पूजा का सर्वश्रेष्ठ समय वह होता है जब सूर्यास्त हो रहा हो, यह समय भारतीय दर्शन के अनुसार सांय 6:00 बजे से 7:00 बजे के मध्य होता है। नित्य पंचांग देख कर यह पता लगा सकते हैं कि सूर्यास्त किस समय होगा, उसी अनुसार अपनी सांयकालीन पूजा का समय निर्धारित कर सकते हैं। यदि आप शाम की पूजा 4:00 से 5:00 के बीच करते हैं तो रात्रि में 8:00 से 9:00 बजे के मध्य शयन आरती कर लेनी चाहिए।

पूजा कब नहीं करनी चाहिए

दीर्घशंका, सहवास, मांस मदिरा आदि के तुरंत बाद पूजा नहीं करनी चाहिए, स्नान आदि करके पवित्र होकर ही पूजा करनी चाहिए।

किसी भी स्त्री को मासिक धर्म के दौरान पूजा बात नहीं करनी चाहिए।

जब परिवार में सूतक लगा हुआ हो तो उस दौरान पूजा नहीं करनी चाहिए। यह सूतक परिवार में किसी नए व्यक्ति का जन्म हुआ हो या किसी सदस्य की की मृत्यु हुई हो सकता है।

पूजा के बाद क्या करना चाहिए

पूजा के बाद पूजा में उपयोग में लिए गए फूल आदि को नदी में प्रवाहित कर देना चाहिए तथा फल व पूजा सुपारी, चावल, धान व अन्य पूजन सामग्री को भी ज्यादा समय तक पूजा के बाद घर में नहीं रखनी चाहिए। पूजा के बाद बची शेष सामग्री जो उपयोगी हो उसे ब्राह्मण को दान कर देनी चाहिए और जो उपयोगी ना हो उसे तुरंत नदी में प्रवाहित कर देनी चाहिए। उपले पर लगाए हुए भोग की राख को भी घर में रखना शुभ नहीं है इसीलिए उसे भी जल में प्रवाहित कर देनी चाहिए। हवन-पूजन के बाद बची हुई सामग्री और राख आदि को मिट्टी में गड्ढा खोदकर उसमें दबा देना चाहिए।

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पूजा करने के नियम 

पूजा करने में पवित्रता का विशेष ध्यान रखें । अपने हाथ पैर धो कर ही घर के मुख्य द्वार में प्रवेश करें ताकि नकारात्मक उर्जा अंदर प्रवेश ना कर सके।

घर के ईशान कोण में ही देवी देवताओं का वास होता है, अतः पूजा का स्थान या पूजा घर हमेशा ईशान कोण में ही होना चाहिए।

पूजा घर में देवी देवताओं की मूर्तियां और तस्वीरें ज्यादा नहीं होनी चाहिए और नहीं इन देवी देवताओं के मुंह आमने सामने होने चाहिए।

पूजन करते समय मुंह उत्तर या पूर्व की दिशा में होना चाहिए।

पूजा में भगवान को तिलक करते समय सिंदूर, चंदन, कुमकुम, हल्दी आदि को अनामिका उंगली से ही लगाना चाहिये।

भगवान को चढ़ाने के लिए फूल नहाने से पहले ही तोड़ ले क्योंकि शास्त्रों के अनुसार नहाने के बाद फूल तोड़ने पर वह फूल स्वयं को चढ़ाया हुआ माना जाता है। तुलसी के पत्तों को हमेशा नहा कर ही तोड़ने चाहिए।

गंगाजल, तुलसी पत्र, बिल्व पत्र और कमल के फूल को कभी भी बासी नहीं माना जाता है, इन्हें गंगाजल या स्वच्छ जल से धोकर पुनः चढ़ा सकते हैं ।

पूजा में भगवान के सामने दीपक जरूर चलाना चाहिए, साथ ही पूजा समाप्त होने पर अपने स्तर से अपनी भूल के लिए उनके समक्ष क्षमा याचना जरूर कर लेनी चाहिए।

सनातन धर्म में कुछ तिथियों और दिनों का विशेष महत्व होता है जैसे अमावस्या, पूर्णिमा, चतुर्दशी, अष्टमी या कोई त्यौहार का दिन आदि। इस दिन पूजा पाठ और अनुष्ठान में विशेष ध्यान रखें। इन तिथियों और दिनों में दुराचरण, दुर्व्यसन, मदिरापान और मांस के सेवन से दूर रहना चाहिए।

किसी भी खास प्रयोजन के लिए यदि कोई पूजा करते हैं तो उसमें लिए गए संकल्प को और दान करने के संकल्प को जितना जल्दी हो उसे पूरा कर लेना चाहिए।

पूजा के पश्चात दक्षिणा अनिवार्य रूप से चढ़ानी चाहिए।

पूजा के दौरान रखे इन बातो का ध्यान 

पूजा के दौरान घी का दीपक जलाना बहुत ही शुभ है लेकिन विदित रहे पूजा के दौरान लिया हुआ दीपक कहीं से खंडित और टूटा हुआ ना हो। साथ ही दीपक से अन्य दीपक को नहीं जलाना चाहिए।

पूजा के दौरान भगवान को खंडित चावल कभी भी नहीं चढाने चाहिए

पूजा के दौरान यह ध्यान रहे कि कभी भी भगवान को सूखे या बासी फूल नहीं चढ़ाने चाहिए साथ ही चढ़े हुए फूल और मालाएं संध्या के समय उतार ले।

शास्त्रों के अनुसार घर और मंदिर में कभी भी खंडित मूर्ति नहीं होनी चाहिए। यदि गलती से भी कोई मूर्ति खंडित हो गई हो या टूट गई हो तो उसे तुरंत ही नदी में प्रवाहित कर देनी चाहिए या किसी पीपल के वृक्ष के नीचे रख देनी चाहिए।

पूजा घर में मंदिर के ऊपर भगवान के वस्त्र पुस्तकें आभूषण आदि वस्तुएं न रखें। अपने पूज्य माता-पिता व पितरों का फोटो भी मंदिर में कदापि ना रखें।

भगवान की आरती करते समय भगवान के चरणों की चार बार नाभि की दो बार और मुख की एक या तीन बार आरती करें। भगवान के समस्त अंगों की कम से कम सात बार आरती करनी चाहिए।

पूजा में उपयोग की हुई समस्त सामग्री को पूजा के बाद घर में रखना शुभ नहीं माना जाता है, अतः पूजा के बाद जो भी सामग्री हो यदि वह उपयोगी हो तो उसे ब्राह्मण को दान कर दें और जो उपयोगी ना हो उसे तुरंत नदी में प्रवाहित कर देना चाहिए।

पूजा मे जल का पात्र किस तरफ रखे  

जहाँ तक संभव हो पूजा करने के लिए पूर्व दिशा मे ही मुख करके बैठे और अपनी बांयी ओर घंटी, धुप वहीँ अपने दांयी ओर शंख, पूजन सामग्री और पूजा मे प्रयुक्त जलपात्र रखे

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पूजा के कितने प्रकार है

पूजा के मुख्य रूप से पंचोपचार,  दशोपचार, षोडशोपचार, द्वात्रिशोपचार, चतुषष्ठीपचार  और एकोद्वात्रिशोपचार यह छह प्रकार है। इनके अतिरिक्त मानस पूजा भी होती है जिसे अंतर्मन के द्वारा की जाती है, धर्म शास्त्रों के अनुसार यह मानस पूजा या मानसिक पूजा बहुत ही शक्तिशाली एवं फलदायक है।

पूजा करते समय क्यों आते है आंसू

पूजा करते समय यदि आंसू आते हैं तो यह इस बात का संकेत है कि आप पूर्ण रूप से शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से पूजा में लीन हो चुके हैं। यदि पूजा के दौरान भगवान से भाव विभोर होकर जुड़ जाते हैं तो भी पूजा के दौरान आंसू आते हैं। यदि कोई मनोकामना स्वीकार हो जाती है या भगवान कोई संकेत दे रहे होते हैं तो भी पूजा के दौरान आंसू आते हैं।

पूजा करते समय फूल का गिरना

पूजा करते समय फूल का गिरना बहुत ही शुभ और अच्छा संकेत माना जाता है। पूजा के दौरान फूल गिरना इस बात का संकेत है कि आप की पूजा ईश्वर ने स्वीकार कर ली है। अनेक बार भगवान से मन्नत मांग कर पुष्प माला चढ़ाते हैं इसके दौरान पुष्प गिरता है तो यह संकेत है कि आपकी वह मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी।


पूजा के दौरान दीपक की ज्योति का बढ़ना या अग्नि का बढ़ना

पूजा के दौरान यदि पूजा में प्रयुक्त दीपक की ज्योति बढ़ने लगे या अग्नि कुछ ज्यादा ही प्रकाश में होने लगे तो यह इस बात का संकेत है कि भगवान भक्ति और पूजा से प्रसन्न है।

पूजा करते समय छींक आना

एक या दो छींक आना तो स्वाभाविक है लेकिन शास्त्रों के अनुसार पूजा करते समय एक या दो से अधिक छींके आना शुभ नहीं है। इसका यह अर्थ भी है कि आप तन मन धन से पूजा नहीं कर रहे हैं जिससे भगवान आप से संतुष्ट नहीं है। पूजा के दौरान बार बार छींक आना इस बात का संकेत है कि कहीं ना कहीं आपके स्वास्थ्य में गिरावट होने वाली है।

पूजा करते समय उबासी आना

पूजा के दौरान उबासी या नींद आना इस बात का संकेत है कि, उस समय कोई अन्य एनर्जी आपके आस-पास मौजूद है। पूजा करते समय उबासी आना या नींद आना इस बात का संकेत है कि आप पूर्ण रूप से और सच्चे मन से पूजा में सम्मिलित नहीं है। आपका शरीर तो उस पूजा में उपस्थित है लेकिन आपका मन अन्य कहीं घूम रहा है। यदि पूजा के दौरान आपके मन में अन्य विचार घूम रहे हैं तो जमाई यह नींद आना स्वाभाविक है।

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09 January, 2021

इन पत्तों से चमका सकते है किस्मत, इनके बिना अधूरा रहता है पूजा-पाठ

प्रकृति के बिना मानव जीवन अधूरा है, इसमें पेड़ पौधे हमारे जीवन के अभिन्न अंग है। पेड़ पौधे हमें ऑक्सीजन देने के साथ ही कार्बन डाइऑक्साइड जैसी हानिकारक गैस को ग्रहण कर लेते हैं। इन्हीं के कारण वातावरण हरा भरा रहता है और पर्यावरण शुद्ध रहता है। प्रकृति के अलावा पेड़ पौधे धार्मिक दृष्टिकोण से भी काफी महत्वपूर्ण है। प्राचीन काल और अनंत वर्षों से पेड़ पौधों की हिफाजत करना सनातन संस्कृति का अहम हिस्सा रहा है।



अधिकांशतः हिंदू धर्म के शुभ और मांगलिक कार्यों में वृक्षों को काफी सम्मान दिया जाता रहा है, समस्त मांगलिक कार्यक्रमों और पूजा पाठ में कुछ प्रमुख वृक्षों के पत्तों का अपना अलग ही महत्व है जिनके बिना उस मांगलिक कार्यक्रम को पूरा करना नामुमकिन है । हरतालिका तीज व्रत में महादेव और पार्वती जी को 16 तरह की पत्तियां चढ़ती है । इस लेख में हम ज्योतिष और शास्त्र के अनुसार हिंदू धर्म में शुभ माने जाने वाले वृक्षों के पत्तों के बारे में जानेंगे।

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1. तुलसी का पत्ता


हिंदू धर्म में तुलसी के पौधे को बहुत ही पवित्र पौधा माना जाता है साथ ही सभी मांगलिक कार्यों में तुलसी के पत्तों का उपयोग किया जाता है। भगवान की पूजा और उनको भोग अर्पण करने में तुलसी के पत्ते या तुलसी दल का होना आवश्यक है। तुलसी पत्ते के बारे में ऐसा कहा जाता है कि तुलसी का पत्ता 11 दिन तक शुद्ध रहता है इसीलिए तुलसी के एक ही पत्ते को भी 11 दिनों तक गंगाजल में धोकर भगवान को अर्पित किया जा सकता है।

लेकिन ध्यान रहे तुलसी के पत्ते को रविवार के दिन एकादशी के दिन द्वादशी के दिन संक्रांति के दिन और संध्या के वक्त नहीं तोड़ना चाहिए । भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी के पत्ते या तुलसी दल का होना अनिवार्य है इसके बिना हरि पूजा अधूरी है, वही तुलसी के पत्ते को भगवान भोलेनाथ, गणपति जी और भैरव बाबा को अर्पण नहीं करना चाहिए। शास्त्रानुसार भगवान के भोग में तुलसी पत्ता होना अनिवार्य है अन्यथा भगवान भोग स्वीकार नहीं करते हैं।

विशेष:- तुलसी के पत्तों को कभी भी भगवान के चरणों में अर्पित नहीं करना चाहिए।

2. बिल्वपत्र


भगवान शिव की पूजा में बिल्वपत्र का बहुत ही महत्व है बिल्वपत्र के बिना भगवान शिव की पूजा अर्चना अधूरी है। शिव जी की पूजा, अर्चना और अभिषेक के दौरान बिल्वपत्र चढ़ाना अनिवार्य है शिवलिंग पर बिल्वपत्र चढ़ाने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। यदि नया बिल्वपत्र नहीं मिल पाता है तो किसी दूसरे के चढ़ाए हुए बिल्व पत्र को भी धो कर उसे चढ़ाया जा सकता है। बिल्वपत्र में जितने अधिक पत्ते होंगे उतना ही उसे उत्तम माना जाता है तथा यह बिल्वपत्र को शिवलिंग पर सदैव उल्टा अर्पित करना चाहिए। बिल्वपत्र को तोड़ते वक्त केवल इसकी पत्तियां ही तोड़नी चाहिए ध्यान रहे टहनी ना टूटे। बिल्वपत्र तोड़ते समय निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिए

"अमृतोद्भव श्रीवृक्ष महादेवप्रिय: सदा।

गृह्णामि तव पत्राणि शिवपूजार्थमादरात् ॥"

विशेष:- शिवलिंग पर बिल्वपत्र अर्पित करते समय बिल्वपत्र दल में तीन पत्तियां होनी चाहिए एवं इसे चंदन लगाकर शिवलिंग पर उल्टा अर्पित करें।

3. पान का पत्ता


सनातन धर्म में पूजा-पाठ और अन्य शुभ और मांगलिक कार्यों में पान के पत्ते को अनिवार्य रूप से शामिल किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि पान के पत्ते में विभिन्न देवी देवताओं का वास होता है। पान के पत्ते के ठीक ऊपर वाले हिस्से में देवराज इंद्र और शुक्र देव विराजित है, बीच के हिस्से में मां सरस्वती विराजमान है, वहीं पत्ते के निचले हिस्से में मां महालक्ष्मी विराजमान है। भगवान शिव भी पान के पत्ते में वास करते हैं। पूजा पाठ में भगवान को स्नान करवाने, आचमन करने आदि कार्यों में पान के पत्ते का ही उपयोग किया जाता है। कलश स्थापना में भी पान और आम के पत्ते का उपयोग होता है। दक्षिण भारत में किसी भी शुभ और मांगलिक कार्यक्रम में भगवान से प्रार्थना करते समय पान के पत्ते के अंदर पान का बीज और ₹1 का सिक्का रखकर प्रार्थना करने का विधान है। मान्यता के अनुसार यदि आप रविवार को किसी विशेष काम करने के लिए बाहर जा रहे हैं तो आप अपने पास पान का पत्ता अवश्य रखें कहा जाता है कि ऐसा करने से वह विशेष कार्य अवश्य पूरा होता है।

विशेष:- पूजा पाठ में और पूजा की थाली में खण्डित या सुखे हुए पान के पत्ते का उपयोग नहीं करना चाहिए।

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4. केले का पत्ता


सनातन धर्म में केले के पत्ते को पवित्र और पूज्य माना जाता है। पूजा पाठ के दौरान केले के फल तने और पत्ते का उपयोग किया जाता है। हिंदू धर्म में विवाह के समय बांस के साथ केले के पत्तों का ही मंडप बनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि केले के वृक्ष में भगवान श्री हरि का वास है इसीलिए सत्यनारायण भगवान की कथा में केले के पत्तों का ही मंडप बनाया जाता है। दक्षिण भारत में भोजन केले के पत्ते पर ही किया जाता है जिसका अपना साइंटिफिक महत्व भी है। गुरुवार के दिन भगवान बृहस्पति देव की पूजा में केले का विशेष महत्व बताया गया है। मान्यता के अनुसार यदि आप साथ गुरुवार नियमित रूप से केले के वृक्ष की पूजा अर्चना करते हैं तो सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है वही अविवाहित कन्याओं को सुंदर व सुशील वर की प्राप्ति होती है।

विशेष:- भगवान श्री हरि विष्णु और माँ लक्ष्मी को केले के पत्ते पर भोग लगाने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।

5. आम का पत्ता


सनातन धर्म में धार्मिक कर्मकांड और मांगलिक कार्यक्रम में आम के पत्तों का उपयोग किया जाता है, इसके अलावा विवाह के दौरान तोरण में भी आम के पत्ते को शामिल किया जाता है। वैदिक काल से ही हवन आदि में आम की लकड़ियों का उपयोग करते आ रहे हैं वहीं पूजा पाठ आदि ने आम के पत्तों का विशेष महत्व है। पौराणिक काल से ही घर के मुख्य द्वार पर आम के पत्तों की माला बनाकर लगाई जाती है, ऐसा माना जाता है कि इससे सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। वरुण कलश स्थापना में पान के पत्तो के साथ आम के पत्तों का ही उपयोग होता है।

विशेष:- भगवान राम के प्रमुख सेवक हनुमान जी महाराज की पूजा के दौरान आम का पत्ता होना अनिवार्य है क्योंकि आम हनुमान जी को विशेष प्रिय हैं।

6. सोम की पत्ती


पौराणिक काल से ही देवी देवताओं को सोम की पत्तियां अर्पित की जाती रही है, हालांकि वर्त्तमान में इन पत्तियों का मिलना बहुत ही मुश्किल है क्योंकि इनकी पहचान कम ही लोगो को पता है और ये सोम लताएं पर्वत श्रृंखलाओं में ही पायी जाती है। प्राचीन काल मे इन्हीं सोम पत्तियों से सोम रस निकाला जाता था जो नशे से रहित होता था। कुछ विद्वान सोम की पत्ती को ही संजीवनी बूटी कहते हैं।

7. शमी का पत्ता


शमी का पत्ता भगवान गणपति और भगवान शनि दोनों को चढ़ता है। गणपति जी को शमी का पत्ता बहुत प्रिय है क्योंकि इस पत्ते में भगवान शिव का वास होता है इसीलिए इस पत्ते को गणेश जी पर चढ़ाते हैं। शमी के पत्ते को शनिवार के दिन भगवान शनि को अर्पित करने से शनि के दोस्त कम होते हैं और बिगड़े हुए काम बनने लग जाते हैं। शमी का पता भगवान शिव को भी चढ़ाया जाता है हर सोमवार के दिन शिवलिंग पर  शमी का पत्ता चढ़ाने से ग्रहों के दोष दूर होते हैं। ऐसा माना जाता है कि घर में शमी का पेड़ लगाने से घर में सुख समृद्धि बनी रहती है और देवी देवताओं की कृपा हमेशा रहती है।

विशेष:- यदि घर परिवार नौकरी और कारोबार में परेशानियां है तो बुधवार के दिन गणेश जी को शमी के पत्ते अर्पित करने चाहिए।

भारत का अद्भुत स्थान है पराशर झील और मंदिर, दिखाई देते है दैवीय शक्ति के प्रमाण  

8.पीपल का पत्ता


हिंदू धर्म में मान्यता के अनुसार पीपल वृक्ष में सभी देवी देवताओं का वास होता है पूर्ण भगवान शिव को भी पीपल का पत्ता बहुत प्रिय है इसीलिए पीपल वृक्ष को देवों का देव कहा गया है। भगवान शिव को पीपल के पत्ते अर्पित करने से शनि के दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है। वही पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर उस पीपल के 11 पत्ते तोड़कर उन पर चंदन से भगवान श्री राम का नाम लिखकर उनकी माला बनाकर हनुमानजी को अर्पित की जाती है जिससे सभी कष्टों का निवारण होता है। पीपल के वृक्ष की परिक्रमा करने मात्र से कालसर्प जैसे दोस्त से भी छुटकारा पाया जा सकता है।

विशेष:- यदि आपकी कुंडली में अशुभ ग्रहों का योग है तो नित्य पीपल के वृक्ष में जल अर्पित करें जिससे अशुभ ग्रह के दुष्प्रभाव समाप्त हो जाएंगे। शनिवार के दिन पीपल के वृक्ष के नीचे दीपक जलाने से समृद्धि आती है।

9. बड़ का पत्ता

बड़ के पत्ते का विशेष प्रयोग श्री राम भक्त हनुमान जी महाराज की पूजा में होता है। मान्यता के अनुसार यदि बड़ के पत्ते को होली के दिन हनुमान जी के सामने रखकर हनुमान जी से सुख समृद्धि और कर्ज मुक्ति की प्रार्थना करके, इस पत्ते पर केसर से श्रीराम लिख कर इसे पर्स में रखने से सुख समृद्धि प्राप्त होती है और कर्ज से भी मुक्ति मिलती है।

10. मदार के पत्ते

मदार के पत्ते का प्रयोग हनुमान जी को प्रसन्न करने में तथा उनकी विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है। मदार के पत्ते को स्वच्छ जल से धोकर उन पर चमेली के तेल और चंदन से राम राम लिखकर, नित्य हनुमान जी को उनकी माला बनाकर चढ़ाने से सभी कष्टों का निवारण होता है।

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14 September, 2020

क्यों धारण किया जाता है रुद्राक्ष, जाने रुद्राक्ष के लाभ


रुद्राक्ष शब्द संस्कृत भाषा का एक योगिक शब्द है जो रूद्र और अक्सा नामक शब्दों से मिलकर बना है। रूद्र भगवान शिव के वैदिक नामों में से एक हैं और अक्सा का अर्थ है आंसू की बूंद।


रुद्राक्ष की उत्पत्ति

पौराणिक कथाओं और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता सती के देह त्याग पर भगवान शिव को बहुत ही दुख हुआ था, जिससे भगवान शिव की आंखों से निकले ये आँसू अनेक स्थानों पर गिरे इन्हीं आंसुओं से रुद्राक्ष उत्पन्न हुआ है।

रुद्राक्ष के प्रकार

रुद्राक्ष एक से लेकर 21 मुखी तक होते हैं। रुद्राक्ष पर प्राकृतिक रूप से धारिया बनी हुई होती है इन धारियों को गिनकर इन्हीं के आधार पर इनका 1-21 मुखी तक का वर्गीकरण किया जाता है। इनके अलावा गणेश रुद्राक्ष, शिव रुद्राक्ष, गौरीशंकर रुद्राक्ष, नागमुखी रुद्राक्ष भी होते हैं। कुछ रुद्राक्ष को doctor रुद्राक्ष और fire रुद्राक्ष भी कहा जाता है।
 

रुद्राक्ष धारण करने का शुभ मुहूर्त

रूद्राक्ष को पूर्णिमा जैसे शुभ दिनों में धारण करने पर व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त ग्रहण में, संक्रांति को, अमावस्या को, वैशाखी, तीर्थाटन, दीपावली, महाशिवरात्रि, नवरात्रि में धारण करना चाहिए। इनके अलावा आप इष्टदेव के निकट, कुम्भ पर्व में, गंगा पर्व में और और सोमवार को गुरुदेव के सानिध्य में धारण कर सकते हैं। रुद्राक्ष का आधार ब्रह्मा जी, इसकी नाभि विष्णु जी, इसके चेहरे रुद्र और इसके छिद्र देवताओं के होते हैं।

रुद्राक्ष पहनने के नियम

किसी भी प्रकार का रुद्राक्ष धारण करना हो या किसी विशेष उद्देश्य के लिए रुद्राक्ष धारण करना हो सभी के लिए कुछ नियम है, इनका पालन करना बेहद आवश्यक होता है क्योंकि इन नियमों का पालन करने पर ही रुद्राक्ष का सभी फल प्राप्त होता है।
रुद्राक्ष धारण करने से पूर्व उसकी जांच अवश्य करनी चाहिए कि वह रुद्राक्ष असली है। यदि कोई रुद्राक्ष खंडित या कांटो से रहित या कीड़ा लगा हुआ है उस रुद्राक्ष को कभी भी धारण नहीं करना चाहिए।
रुद्राक्ष धारण करने से पहले उस रुद्राक्ष को कच्चे दूध और गंगाजल से पवित्र करें और फिर केसर, दूध और सुगंधित पुष्पों से शिवजी की पूजा करने के बाद ही इसे धारण करें।
रुद्राक्ष को शुभ मुहूर्त में ही धारण करें लेकिन उसे धारण करने से पूर्व उसमें प्राण प्रतिष्ठा अवश्य करवाएं ।
रुद्राक्ष को नाभि के ऊपर भाग में ही धारण करें जैसे सिर में, गले में, कलाई पर या बाँह में। रुद्राक्ष को कभी भी अंगूठी मैं धारण नहीं करना चाहिए क्योंकि अंगूठी में धारण करने से उसकी पवित्रता नष्ट हो जाती है।
रुद्राक्ष धारण करके कभी भी प्रसूति गृह शमशान या किसी की अंतिम यात्रा में नहीं जाना चाहिए । मासिक धर्म के दौरान स्त्रियों को रुद्राक्ष उतार देना चाहिए इनके अलावा रात्रि में सोने से पूर्व भी रुद्राक्ष उतार दे।

रुद्राक्ष पहनने में रखे सावधानी

पुराणों और शास्त्रों में रुद्राक्ष धारण के विषय में कोई विशेष परहेज नहीं बताया गया है लेकिन फिर भी रुद्राक्ष धारण करने वाले व्यक्ति को तामसिक पदार्थों से दूर रहना चाहिए। मांस, मदिरा, प्याज, लहसुन आदि का त्याग करना उचित होता है। आत्मिक शुद्धता के द्वारा ही रुद्राक्ष के लाभ को प्राप्त किया जा सकता है। शुद्ध विचार, मनुष्य के कल्याण तथा मानसिक शांति के लिए बेहद जरूरी है इसीलिए रुद्राक्ष पहनने वाले व्यक्ति को अपने विचार शुद्ध, तन-मन स्वच्छ एवं सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए। रुद्राक्ष मन को पवित्र कर विचारों को पवित्र करता है।

रुद्राक्ष के लाभ, रुद्राक्ष के महत्त्व या रुद्राक्ष के फायदे

रुद्राक्ष एक ऐसा फल माना गया है जो अर्थ धर्म काम और मोक्ष प्रदान करने में कारगर है। शिवपुराण, पद्मपुराण, रुद्राक्षकल्प, रुद्राक्ष महात्म्य आदि ग्रंथों में रुद्राक्ष के अपार महिमा बताई गई है। वैसे तो सभी रुद्राक्ष लाभकारी होते हैं लेकिन मुख के अनुसार इनका महत्व अलग-अलग बताया गया है। धार्मिक मान्यताओं और शास्त्रों के अनुसार जिस घर में रुद्राक्ष की नियमित पूजा होती है वहां पर अन्न, वस्त्र, धन-धान्य कि कभी भी कमी नहीं रहती है और वहां पर सदैव मां लक्ष्मी का निवास रहता है।

एक मुखी रुद्राक्ष

 
एक मुखी रुद्राक्ष सबसे महत्वपूर्ण और लाभदायक रुद्राक्ष माना जाता है जिसमें साक्षात भगवान महादेव का निवास माना जाता है । इसका मुख्य ग्रह सूर्य होते हैं। यह एक मुखी रुद्राक्ष बहुत अधिक ऊर्जावान होता है जो धारक को प्रदान करता है।
यह एक मुखी रुद्राक्ष पापों को मुक्त करने वाला है। इसे धारण करने पर मन शांत होता है और धन का आगमन भी होने लगता है वही हृदय रोग, नेत्र रोग, सिर दर्द का कष्ट दूर होते है। यह एक मुखी रुद्राक्ष पहनने से मन भयमुक्त एवं विकार रहित होता है जिससे चेतना का द्वार खुलता है।
यह रुद्राक्ष क्रूर ग्रहों के नकारात्मक प्रभाव को दूर करने में मदद करता है, विशेष रूप से जन्म कुंडली में सूर्य के नकारात्मक प्रभाव को दूर करने के लिए भी पहना जाता है। यह रुद्राक्ष सहस्त्र चक्र को जागृत करता है जो कि स्वर्ग और पृथ्वी के बीच की कड़ी का प्रतीक है।

 
दो मुखी रुद्राक्ष
 
2 मुखी रुद्राक्ष को भगवान महादेव और माता पार्वती दोनों का स्वरूप माना गया है यह रुद्राक्ष अर्धनारीश्वर का प्रतिनिधित्व करता है। इसका मुख्य ग्रह चन्द्र हैं। 2 मुखी रुद्राक्ष को धारण करने वाले का अंतर्मन स्वस्थ और ठीक रहता है एवं उसका दांपत्य जीवन सुखी रहता है। जिन लोगों पर राहु के दुष्प्रभाव हैं एवं जिन्हें अनिद्रा की शिकायत रहती है उन्हें यह दो मुखी रुद्राक्ष अवश्य धारण करना चाहिए। यह दो मुखी रुद्राक्ष पढ़ने वाले को आंतरिक आनंद और रचनात्मकता प्रधान करते हुए सभी पहलुओं में सकारात्मकता भी प्रदान करता है। यह दो मुखी रुद्राक्ष मनुष्य के जीवन से तनाव और पीड़ा को दूर करता है, मांसपेशियों को मजबूत करता है एवं यौन समस्याओं को भी ठीक करने में सहायक है।यह शिव और शक्ति का प्रतीक है इसे धारण करने पर यह फेफड़े, गुर्दे, वायु और आंख के रोग को बचाता है। यह माता-पिता के लिए भी शुभ होता है।
 
तीन मुखी रुद्राक्ष
 
तीन मुखी रुद्राक्ष को त्रिदेवों का प्रतीक माना जाता है इसे धारण करने वाले पर त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की कृपा होने लगती है। भगवान शिव के त्रिनेत्र है वही माँ भगवती महाकाली भी त्रिनेत्रा है इसलिए इसे त्रिनेत्र का प्रतीक भी माना गया है जिसका मुख्य ग्रह मंगल है।
तीन मुखी रुद्राक्ष में अग्नि तत्व जिसके फलस्वरुप यह व्यक्ति की पेट की बीमारियों को दूर करता है एवं पेट संबंधी बीमारियों में अद्भुत लाभ देता है। इसे धारण करने वाले व्यक्ति को दिव्य तेज व शक्ति तो प्राप्त होती ही है साथ ही स्त्री हत्या जैसे महापाप से भी मुक्ति मिलती है। तीन मुखी रुद्राक्ष को पहनने वाले व्यक्ति में आत्मविश्वास बढ़ता है एवं वह ऊर्जावान बने रहता है साथ ही व्यक्ति को समाज में मान सम्मान व जीवन में सफलता मिलती है।
तीन मुखी रुद्राक्ष धारण करने से रक्तविकार, रक्तचाप, कमजोरी, मासिक धर्म, अल्सर जैसे रोगों में भी लाभ मिलता है।
ध्यान करने वाले व्यक्ति के आज्ञा चक्र जागरण (थर्ड आई) में इसका विशेष महत्व है।
 
चार मुखी रुद्राक्ष
 
4 मुखी रुद्राक्ष के प्रमुख देवता ब्रह्मा जी है इसे चतुर्मुख ब्रह्मा का स्वरूप माना गया है। चारों वेदों का प्रतीक भी माना गया है। यह चारों वर्ण ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र तथा चारो आश्रम ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ तथा संन्यास के द्वारा पूजित और परम वंदनीय है। चार मुखी रुद्राक्ष बुधग्रह का प्रतिनिधित्व करता है, इसे वैज्ञानिक, शोधकर्त्ता और चिकित्सक यदि पहनें तो उन्हें विशेष प्रगति का फल देता है।
इसे धारण करने वाला धनवान, आरोग्यवान, ज्ञानवान व प्रखर बुद्धि वाला बनने लग जाता है। यहां 4 मुखी रुद्राक्ष बुद्धिदाता है, पढ़ने में कमजोर या बोलने में अटकने वाले बालकों के लिए यह धारण करना उत्तम है।
इससे धारण करने पर मानसिक रोगों में शांति मिलती है एवं इसका स्वास्थ्य भी उत्तम रहता है। यह मानसिक रोग, बुखार, पक्षाघात, नाक की बीमारी, त्वचा रोग, गले संबंधी समस्याओं में भी लाभदायक है।
पांच मुखी रुद्राक्ष
 
यह रुद्राक्ष साक्षात भगवान शिव का प्रसाद एवं सुलभता से प्राप्त होने वाला भी है। यह बृहस्पति ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है और भगवान शिव के काल अग्नि रूद्र रूप से शासित है। यह मानव के पांच तत्व अग्नि जल वायु आकाश और पृथ्वी के रूप में है वही यहां भगवान शिव के 5 रूपों का प्रतीक भी है।
यह ऊर्जा के निर्बाध प्रवाह के लिए लाभदायक है जिससे शरीर में चक्र सक्रिय होने में मदद मिलती है। इस पंचमुखी रुद्राक्ष को धारण करने वाला व्यक्ति निडर बनता है एवं और असमय होने वाली मृत्यु से बचाव होता है। यह तारक को तनावमुक्त करता है और उसके मन को शांत लगता है साथ ही उसके अच्छे स्वास्थ्य को सुनिश्चित करता है। यह बृहस्पति का कारक है जिससे बृहस्पति के क्रूर प्रभाव का असर कम होता है एवं व्यक्ति बुद्धिमान बनता है।
पांच मुखी रुद्राक्ष सभी रोगों को हरण करने वाला माना गया है। मधुमेह रोग, ब्लडप्रैशर, नाक, कान, गुर्दा की बीमारी में धारण करना बहुत ही लाभप्रद है।
 
छ: मुखी रुद्राक्ष
 
6 मुखी रुद्राक्ष भगवान शिव और माता पार्वती के जेष्ठ पुत्र कार्तिकेय द्वारा शासित है। यह रुद्राक्ष मंगल ग्रह से संबंधित है लेकिन यह शुक्र ग्रह द्वारा शासित है एवं इसको तीनों देवियों मां सरस्वती, मां लक्ष्मी और माता पार्वती का स्वरूप माना गया है। इस रुद्राक्ष को धारण करने वाले व्यक्ति को असीम गुणों के साथ आशीर्वाद की प्राप्ति भी होती है।छह मुखी रुद्राक्ष जीवन में स्वास्थ्य धन संबंधी सुख आदि को बढ़ाता है और तुला राशि के जातकों के लिए यह रुद्राक्ष बहुत ही शुभ माना गया है।6 मुखी रुद्राक्ष को धारण करने वाले व्यक्ति में आकर्षण बढ़ता है, बुद्धि और स्थिर मन होने के साथ ही ज्ञान भी बढ़ता है साथ ही व्यक्ति के व्यक्तित्व कौशल और कलात्मक गुणों में वृद्धि होती है। इस रुद्राक्ष को धारण करने से आत्मघृणा, झुंझलाहट और क्रोध जैसी भावनाओं से छुटकारा मिलता है साथ ही यह धारक की यौन समस्याओं के इलाज में भी सहायक है।इस पर शुक्रग्रह सत्तारूढ़ है जिससे यह शरीर के समस्त विकारों को दूर करता है, उत्तम सोच-विचार को जन्म देता है एवं राजदरबार में सम्मान विजय प्राप्त कराता है।
सात मुखी रुद्राक्ष
 
7 मुखी रुद्राक्ष का अधिपति ग्रह शनि है, यह रुद्राक्ष मां भगवती महालक्ष्मी और सब कृतियों का प्रतिनिधित्व करता है। जातक की कुंडली में शनि कमजोर स्थिति में है तो इसे धारण करके इसके नकारात्मक प्रभावों को कम किया जा सकता है। 7 मुखी रुद्राक्ष जातक के जीवन से दुर्भाग्य को दूर करने के लिए जाना जाता है। ज्योतिष के अनुसार मारक ग्रह की दशा होने पर इसको धारण किया जाता है जिससे यह रक्षा कवच की जैसे कार्य करता है और व्यक्ति को अकाल मृत्यु के भय से मुक्त करता है।
यह व्यक्ति की सप्तधातु की रक्षा करता है और मेटाबॉलिज्म को चुस्त-दुरुस्त करता है। यह रुद्राक्ष धारक के लिए रोजगार के अवसरों और संभावनाओं को खोलने में मदद तो करता ही है साथ ही वह व्यक्ति की आय को बढ़ाते हुए यह धन को स्थिर रखने में मदद करता है। यह धारक के हितों और कलात्मक कौशल को बढ़ाते हुए उसके जीवन में सुख समृद्धि और संतोष लेकर आता है।
यह शुक्र ग्रह के प्रभाव को कम करता है साथ ही पाचन संबंधी समस्याओं को ठीक करने एवं मधुमेह जैसी समस्याओं को भी दूर करने में मदद करता है। यदि किसी व्यक्ति को शनि की साढ़ेसाती या ढैया लगी हुई है तो उसको यह सात मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए जिससे वह शनिदेव को खुश कर साढ़ेसाती के क्रूर प्रभाव से बच सके। इसे धारण करने पर माँ लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है, हड्डी के रोग दूर होते है, और यह मस्तिष्क से संबंधित रोगों को भी रोकता है।
 
आठ मुखी रुद्राक्ष
 
8 मुखी रुद्राक्ष को प्रथम पूज्य भगवान श्री गणेश का स्वरूप माना जाता है साथ ही इसे धारण करने पर भैरव बाबा की भी विशेष कृपा प्राप्त होती है। आठ मुखी रुद्राक्ष को धारण करने से गंगा में नहाने जैसा पुण्य प्राप्त होता है साथ ही यह रुद्राक्ष जीवन में आने वाली समस्याओं को दूर करने और संकट में लोगों की मदद करने के लिए माना जाता है। 8 मुखी रुद्राक्ष का सत्तारूढ़ ग्रह केतु है, जिससे इसको धारण करने से राहु और शनि दोष के बुरे प्रभाव को कम करने में मदद मिलती है। 8 मुखी रुद्राक्ष पहनने से कालसर्प दोष के प्रभाव को खत्म किया जा सकता है।
यह रुद्राक्ष धारण करने वाले व्यक्ति को ऊर्जावान बनाते हुए उसके जीवन से नीरसता को दूर करता है साथ ही उसके जीवन में सफलता लाने में मदद करता है। यह व्यक्ति की सकारात्मकता, संतुष्टि और प्रसन्नता को बढ़ाते हुए उसको इच्छा शक्ति और स्थिरता प्रदान करता है।
यह पैर की हड्डी से संबंधित समस्याओं का इलाज करने में सहायक है साथ ही यह फेफड़े लिवर और पेट संबंधी समस्याओं को भी ठीक करने में मदद करता है। यह रुद्राक्ष त्वचा, रोग नेत्र रोग आदि से भी छुटकारा दिलाने में सहायक है।
 
नौ मुखी रुद्राक्ष
 
यह 9 मुखी रुद्राक्ष नवग्रहों का प्रतीक है, साथ ही यह नव शक्ति संपन्न मां दुर्गा का प्रतिनिधित्व भी करता है। इस रुद्राक्ष को नौ देवियों का प्रतीक भी माना गया है।
यह रुद्राक्ष को धारण करने वाले को आत्मविश्वास और शक्तिशाली बनाता है साथ ही धारक के दिमाग से समय भय को मुक्त करता है। यह रुद्राक्ष महिलाओं को शारीरिक और मानसिक शक्ति प्रदान करने के साथ ही कैरियर उन्मुख महिलाओं के लिए अनुशंसित है। यह रुद्राक्ष राहु और केतु ग्रह के क्रूर प्रभाव को दूर करने में सहायक है साथ ही यह पहनने वाले से नकारात्मक ऊर्जा को दूर रखता है।
यह रुद्राक्ष धारण करने वाले व्यक्ति में फोबिया, चिंता और मति भ्रम को दूर करने में मददगार है। यह व्यक्ति में मिर्गी के इलाज, शरीर में दर्द, त्वचा को प्रभावित करने वाली एलर्जी को ठीक करने में भी मदद करता है, साथ ही यह पेट संबंधित समस्याओं को भी दूर करता है। यह रुद्राक्ष दरिद्रता नाशक होता है हाथ में लगभग सभी लोगों से मुक्ति का मार्ग भी देता है ।

 
दस मुखी रुद्राक्ष
 
10 मुखी रुद्राक्ष को भगवान श्री हरि विष्णु का आशीर्वाद माना जाता है, जो त्रिमूर्ति देवताओं का अंश है एवं जिन्हें ब्रह्मांड का पालनहार कहा जाता है। यह रुद्राक्ष भगवान श्री हरि विष्णु जी के दशावतार आशीर्वाद का स्वरूप है, यह धारक के प्रभाव को दसों दिशाओं में फैलाता है। यह रुद्राक्ष भूत प्रेत बाधा, डाकिनी और पिशाचिनी जैसी बुरी शक्तियों के प्रभाव से बचाता है। 10 मुखी रुद्राक्ष तंत्र-मंत्र की साधना करने के लिए एवं शरीर के सात चक्रों को संतुलित बनाए रखने के लिए भी सहायक है।
यहां 10 मुखी रुद्राक्ष धारण धारण करने वाले के ग्रहों के नकारात्मक प्रभाव को ठीक करता है तथा यह धारक को अकाल मृत्यु से बचाता है। यह काले जादू के दुष्प्रभाव को कम करता है साथ ही आसपास के नकारात्मक वातावरण भूत, प्रेत, पिशाच ऐसी शक्तियों को दूर करने में मदद करता है। यह जीवन में दिशा खोजने में मदद करता है एवं इसका उपयोग से घर में वास्तु दोष या किसी अन्य वास्तु संबंधी समस्याओं को कम करने के लिए भी किया जाता है।
यह अनिद्रा और मन की अस्थिरता जैसी समस्याओं को हल करने में मदद करता है एवं यह धारण करने वाले में निराशावादी विचारों को दूर करते हुए उसमें आत्मविश्वास को बढ़ाता है। यह त्वचा एवं पेट संबंधी समस्याओं का इलाज करने, यौन विकारों को ठीक करने एवं तंत्रिका तंत्र को मजबूत करने में मदद करता है।  
ग्यारह मुखी रुद्राक्ष
 
11 मुखी रुद्राक्ष को साक्षात रूद्र का अवतार माना जाता है और यह भगवान शिव के ग्यारहवें अवतार हनुमान जी का प्रतिनिधित्व करता है। इस रुद्राक्ष को एकादशी रुद्र भी कहा जाता है क्योंकि यह हनुमान जी के गुण, समर्पण और ध्यान से परिपूर्ण है एवं इसमें देवराज इंद्र के आशीर्वाद भी समाहित है।
इस रुद्राक्ष को धारण करने करने वाले को जन्म और मृत्यु के चक्र के भय से मुक्ति मिलती है साथ ही इसे गर्दन या सिर के चारों ओर पहनने से तुरंत परिणाम प्राप्त होते हैं। यह रुद्राक्ष धारण करने वाले को शारीरिक और मानसिक शक्ति प्राप्त करने में मदद करता है, उसको बुद्धिमान बनाता है साथ ही उसकी शारीरिक इंद्रियों को नियंत्रित करने में मदद करता है।
यह धारण करने वाले व्यक्ति में डर को दूर करने में मदद करता है, असमय मौत से बचाता है साथ ही लंबी उम्र और सुरक्षा प्रदान करता है। 11 मुखी रुद्राक्ष साढ़ेसाती के दुष्प्रभाव को कम करने में सहायक है साथ ही भूत, प्रेत, देवी बाधा, शत्रु भय आदि से मुक्त करने में सहायक है।
इस रुद्राक्ष को धारण करना परम शुभकारी है इसके प्रभाव से धर्म का मार्ग मिलता है, धार्मिक लोगों का संग मिलता है और ईश्वर की कृपा का मार्ग बनता है।

बारह मुखी रुद्राक्ष

12 मुखी रुद्राक्ष को शिव का अवतार माना जाता है एवं इसे 12 ज्योतिर्लिंग का प्रतीक भी माना जाता है। 12 मुखी रुद्राक्ष का आधिपत्य सभी ग्रहों का स्वामी सूर्य है इसे द्वादशी आदित्य के रूप में भी जाना जाता है। इस रुद्राक्ष में सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा जी का आशीर्वाद निहित है एवं इसे धारण करने वाले को 108 गायों के दान के बराबर शक्ति और आशीर्वाद प्राप्त होता है ।
जो व्यक्ति अधिकारी पेशे में है उन्हें कार्यस्थल पर मान सम्मान नहीं मिलता है उनके लिए यह धारण करने चमत्कारी फायदे मिलते हैं। 12 मुखी रुद्राक्ष लोगों के मन में संदेह को दूर करने जीवन में स्पष्टता लाने विशेष मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने और सही रास्ता चुनने में मदद करता है । यह व्यक्ति को मानसिक और शारीरिक पीड़ा से बचाकर उसे निरोगी बनाने में सहायता करता है । यह धारक को आंतरिक खुशी देता है तनाव मुक्त बनाता है उसके नेतृत्व गुणों को विकसित करते हुए व्यक्ति की आंतरिक आत्मा को मजबूत करता है।
12 मुखी रुद्राक्ष को धारण करने से मूत्र और श्वसन रोगों का इलाज करने में मदद मिलती है, कमजोर दिल मजबूत होता है, व्यक्ति में क्रोध और चिंता को कम करने में सहायता मिलती है, नेत्र रोग से निदान मिलता है एवं ब्रेन से संबंधित कष्टों का निवारण होता है। यह धारक को सूर्य एवं राहु ग्रह के दुष्प्रभाव से बचाता है एवं शिव की कृपा से ज्ञान चक्षु खोलने में सहायता करता है ।
तेरह मुखी रुद्राक्ष
 
13 मुखी रुद्राक्ष शुक्र और चंद्रमा दोनों द्वारा शासित होता है एवं इसे देवराज इंद्र और मां महालक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त है। इस रुद्राक्ष को भगवान कामदेव का आशीर्वाद भी प्राप्त है जो पहनने वाले को दैवीय चमत्कार और अपार शक्ति प्रदान करते हैं । यह रुद्राक्ष धारण करने वाले को सांसारिक सुख देने में मदद करता है एवं उस व्यक्ति के विचारों भावनाओं और अवचेतन को साफ करने की दिशा में कार्य करता है।
यह धारण करने से व्यक्ति में चुंबकत्व और उनके प्रति लोगों को आकर्षित करने के लिए आकर्षण तो बढ़ाता ही है साथ ही व्यक्ति को जीवन में सही रास्ता चुनने और जो वे चाहते हैं उसे प्राप्त करने में सहायता करता है।
यह 13 मुखी रुद्राक्ष कुंडली को जगाने में सहायता करता है एवं मंगल ग्रह और शुक्र ग्रह के प्रभाव को दूर करने में मदद करता है तथा यह आराम और आध्यात्मिक उन्नयन प्रदान करने में भी सहायता करता है। 13 मुखी रुद्राक्ष निसंतान दंपतियों को संतान प्राप्त करने में सहायता करता है और महिलाओं के प्रजनन अंगों को सक्रिय करने और इससे जुड़ी समस्याओं को ठीक करने में मदद करता है ।

चौदह मुखी रुद्राक्ष

14 मुखी रुद्राक्ष भगवान शिव का प्रतीक है एवं इसमें भगवान शिव और हनुमान जी का आशीर्वाद है। पौराणिक कथाओं के अनुसार 14 मुखी रुद्राक्ष का निर्माण भगवान शिव की तीसरी आंख से गिरे आंसू से हुआ था। जिस तरह भगवान शिव की तीसरी आंख खोलने से सभी बुरी शक्तियों का नाश हो जाता है वैसे ही इस रुद्राक्ष को पहनने वाले के जीवन में सभी नकारात्मक उर्जायें समाप्त हो जाती हैं और सकारात्मकता का विकास होता है। यह रुद्राक्ष व्यक्ति को सही निर्णय लेने, जीवन में सफलता और समृद्धि प्राप्त करने में मदद करता है। 14 मुखी रुद्राक्ष धारण करने वाले व्यक्ति पर शनि ग्रह और मंगल ग्रह की कृपा बनी रहती है।
यह रुद्राक्ष धारक को उसकी क्षमताओं को पहचानने में मदद करता है, उसकी इच्छा शक्ति को मजबूत बनाता है एवं उसमें वीरता प्रदान करता है। 14 मुखी रुद्राक्ष व्यक्ति के जीवन में मंगल दोष के प्रभाव को कम करता है एवं शनि की साढ़ेसाती के प्रभाव को कम करने में भी सहायता करता है।
14 मुखी रुद्राक्ष शरीर में मांसपेशियों और हड्डियों को मजबूत बनाता है, तंत्रिका तंत्र विकारों के इलाज में और स्त्री रोग संबंधी समस्याओं के इलाज में मदद करता है और यह दुख, चिंता और भय से बचाता है। यह त्वचा रोग, बाल के रोग और पेट के रोगों को दूर करने में भी सहायता करता है।