21 January, 2021

कब करनी चाहिए पूजा, पूजा करते समय रखें इन बातो का ध्यान

पूजा क्या है

अपने इष्ट या भगवान को प्रसन्न करने एवं उनका आशीर्वाद और उनकी कृपा अपने ऊपर बनाए रखने के लिए किया जाने वाला उनका अभिवादन पूजा कहलाता है। पूजा दैनिक जीवन का मानसिक और शारीरिक क्रियाओं द्वारा किया जाने वाला शांतिपूर्ण एवं अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य है। पूजा अपने इष्ट के समीप होने का एहसास करने की एक सरल कर्मकांडी विधि है जो हमें कुछ समय के लिए सांसारिक जीवन की गतिविधियों से परे कर एक अलग ही आध्यात्मिक संसार में पहुंचा देती है जहां तन्मयता, पवित्रता और बहुत ही शांति देने वाला तथा तृप्त कर देने वाला मनोभाव होता है। पूजा में वेद और पुराणों से लिए हुए श्लोकों का उपयोग किया जाता है एवं भगवान को पुष्प, भोग आदि समर्पित किया जाता है। पूजा तन मन और धन से निर्विकार होकर अपने प्रभु को स्वयं को पूर्ण रूप से सौंपते हुए की जाती है।

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सुबह पूजा करने के फायदे

वैसे तो भगवान की सच्चे मन से कभी भी पूजा की जा सकती है लेकिन ब्रह्म मुहूर्त में पूजा करना अपने आप में एक विशेष फल देने वाला होता है। सुबह जल्दी उठकर पूजा करने से भी बात पूजा और सकारात्मकता बनी रहती है।

सुबह के समय हम नींद से जागने के बाद थकान से दूर होते हैं तथा इस समय हमारा मन सबसे ज्यादा शांत रहता है। सुबह के समय अनावश्यक शोरगुल नहीं होता है तथा वातावरण में भी पर्याप्त शुद्धता रहती है जिससे पूजा में ध्यान रहता है। पूजा करते समय भगवान का ध्यान, मंत्रों का उच्चारण और जाप आदि करना होता है इनके लिए सुबह का समय श्रेष्ठतम है। 

भगवान की पूजा करने के लिए जरूरी है कि हम मन से एकाग्र रहे और हमारा पूरा मानसिक और शारीरिक ध्यान पूजा में रहे इसलिए पूजा सुबह के समय करें क्योंकि सुबह के समय हमारे दिमाग में इधर-उधर के व्यर्थ विचार नहीं होते हैं ।

दिन भर में अथोर्पार्जन और जीवोर्पार्जन के लिए हम मानसिक और शारीरिक रूप से कई कार्य करते रहते हैं जिससे मन में बहुत सारे विचार चलते रहते हैं। सुबह के समय है हमारा मन चंचल ना होकर शांत और स्थिर रहता है।

सुबह कितनी बजे पूजा करनी चाहिए

सुबह के समय पूजा को लेकर अनेक विद्वानों के अलग-अलग मत है लेकिन इन सभी में ब्रह्म मुहूर्त में पूजा करना का समय समान है। पूजा करने का सही समय तो सुबह ब्रह्म मुहूर्त में ही है जो सुबह 4:00 बजे के बाद लग जाता है। 4:00 बजे से लेकर 5:00 बजे के बीच की गई पूजा का विशेष फल प्राप्त होता है। यदि आप इस समय में पूजा नहीं कर पाते हैं तो भी कोई बात नहीं लेकिन 10:00 बजे से पहले पहले आप की पूजा हो जानी चाहिए। संभवतः पूजा सूर्योदय से पहले हो जाए तो काफी बेहतर है, ताकि सूर्योदय के समय सूर्य देव को जल चढ़ाया जा सके।

क्या दोपहर में पूजा करनी चाहिए

दोपहर का समय भगवान के शयन का समय होता है इसी कारण  मंदिरों में इस समय भगवान के पर्दे लगे होते है एवं मंदिर के पट बंद होते हैं। दोपहर के समय भगवान की पूजा करने पर पूजा का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता है। दोपहर के समय व्यक्ति के मन में कई प्रकार के विचार चलते रहते हैं जिससे वह एकाग्र चित्त होकर पूजा नहीं कर पाता है। यदि अतिआवश्यक ना हो तो दोपहर के समय पूजा करने से बचना चाहिए क्योंकि दोपहर का समय भगवान के शयन का समय होता है।

दोपहर का समय पितरों की पूजा के लिए शुभ माना जाता है, पितृपूजा का पूर्ण फल प्राप्त करने के लिए उनकी पूजा दोपहर 12 बजे से 4 बजे के मध्य करनी चाहिए।

 शाम को कितनी बजे पूजा करनी चाहिए

शाम को पूजा का सर्वश्रेष्ठ समय वह होता है जब सूर्यास्त हो रहा हो, यह समय भारतीय दर्शन के अनुसार सांय 6:00 बजे से 7:00 बजे के मध्य होता है। नित्य पंचांग देख कर यह पता लगा सकते हैं कि सूर्यास्त किस समय होगा, उसी अनुसार अपनी सांयकालीन पूजा का समय निर्धारित कर सकते हैं। यदि आप शाम की पूजा 4:00 से 5:00 के बीच करते हैं तो रात्रि में 8:00 से 9:00 बजे के मध्य शयन आरती कर लेनी चाहिए।

पूजा कब नहीं करनी चाहिए

दीर्घशंका, सहवास, मांस मदिरा आदि के तुरंत बाद पूजा नहीं करनी चाहिए, स्नान आदि करके पवित्र होकर ही पूजा करनी चाहिए।

किसी भी स्त्री को मासिक धर्म के दौरान पूजा बात नहीं करनी चाहिए।

जब परिवार में सूतक लगा हुआ हो तो उस दौरान पूजा नहीं करनी चाहिए। यह सूतक परिवार में किसी नए व्यक्ति का जन्म हुआ हो या किसी सदस्य की की मृत्यु हुई हो सकता है।

पूजा के बाद क्या करना चाहिए

पूजा के बाद पूजा में उपयोग में लिए गए फूल आदि को नदी में प्रवाहित कर देना चाहिए तथा फल व पूजा सुपारी, चावल, धान व अन्य पूजन सामग्री को भी ज्यादा समय तक पूजा के बाद घर में नहीं रखनी चाहिए। पूजा के बाद बची शेष सामग्री जो उपयोगी हो उसे ब्राह्मण को दान कर देनी चाहिए और जो उपयोगी ना हो उसे तुरंत नदी में प्रवाहित कर देनी चाहिए। उपले पर लगाए हुए भोग की राख को भी घर में रखना शुभ नहीं है इसीलिए उसे भी जल में प्रवाहित कर देनी चाहिए। हवन-पूजन के बाद बची हुई सामग्री और राख आदि को मिट्टी में गड्ढा खोदकर उसमें दबा देना चाहिए।

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पूजा करने के नियम 

पूजा करने में पवित्रता का विशेष ध्यान रखें । अपने हाथ पैर धो कर ही घर के मुख्य द्वार में प्रवेश करें ताकि नकारात्मक उर्जा अंदर प्रवेश ना कर सके।

घर के ईशान कोण में ही देवी देवताओं का वास होता है, अतः पूजा का स्थान या पूजा घर हमेशा ईशान कोण में ही होना चाहिए।

पूजा घर में देवी देवताओं की मूर्तियां और तस्वीरें ज्यादा नहीं होनी चाहिए और नहीं इन देवी देवताओं के मुंह आमने सामने होने चाहिए।

पूजन करते समय मुंह उत्तर या पूर्व की दिशा में होना चाहिए।

पूजा में भगवान को तिलक करते समय सिंदूर, चंदन, कुमकुम, हल्दी आदि को अनामिका उंगली से ही लगाना चाहिये।

भगवान को चढ़ाने के लिए फूल नहाने से पहले ही तोड़ ले क्योंकि शास्त्रों के अनुसार नहाने के बाद फूल तोड़ने पर वह फूल स्वयं को चढ़ाया हुआ माना जाता है। तुलसी के पत्तों को हमेशा नहा कर ही तोड़ने चाहिए।

गंगाजल, तुलसी पत्र, बिल्व पत्र और कमल के फूल को कभी भी बासी नहीं माना जाता है, इन्हें गंगाजल या स्वच्छ जल से धोकर पुनः चढ़ा सकते हैं ।

पूजा में भगवान के सामने दीपक जरूर चलाना चाहिए, साथ ही पूजा समाप्त होने पर अपने स्तर से अपनी भूल के लिए उनके समक्ष क्षमा याचना जरूर कर लेनी चाहिए।

सनातन धर्म में कुछ तिथियों और दिनों का विशेष महत्व होता है जैसे अमावस्या, पूर्णिमा, चतुर्दशी, अष्टमी या कोई त्यौहार का दिन आदि। इस दिन पूजा पाठ और अनुष्ठान में विशेष ध्यान रखें। इन तिथियों और दिनों में दुराचरण, दुर्व्यसन, मदिरापान और मांस के सेवन से दूर रहना चाहिए।

किसी भी खास प्रयोजन के लिए यदि कोई पूजा करते हैं तो उसमें लिए गए संकल्प को और दान करने के संकल्प को जितना जल्दी हो उसे पूरा कर लेना चाहिए।

पूजा के पश्चात दक्षिणा अनिवार्य रूप से चढ़ानी चाहिए।

पूजा के दौरान रखे इन बातो का ध्यान 

पूजा के दौरान घी का दीपक जलाना बहुत ही शुभ है लेकिन विदित रहे पूजा के दौरान लिया हुआ दीपक कहीं से खंडित और टूटा हुआ ना हो। साथ ही दीपक से अन्य दीपक को नहीं जलाना चाहिए।

पूजा के दौरान भगवान को खंडित चावल कभी भी नहीं चढाने चाहिए

पूजा के दौरान यह ध्यान रहे कि कभी भी भगवान को सूखे या बासी फूल नहीं चढ़ाने चाहिए साथ ही चढ़े हुए फूल और मालाएं संध्या के समय उतार ले।

शास्त्रों के अनुसार घर और मंदिर में कभी भी खंडित मूर्ति नहीं होनी चाहिए। यदि गलती से भी कोई मूर्ति खंडित हो गई हो या टूट गई हो तो उसे तुरंत ही नदी में प्रवाहित कर देनी चाहिए या किसी पीपल के वृक्ष के नीचे रख देनी चाहिए।

पूजा घर में मंदिर के ऊपर भगवान के वस्त्र पुस्तकें आभूषण आदि वस्तुएं न रखें। अपने पूज्य माता-पिता व पितरों का फोटो भी मंदिर में कदापि ना रखें।

भगवान की आरती करते समय भगवान के चरणों की चार बार नाभि की दो बार और मुख की एक या तीन बार आरती करें। भगवान के समस्त अंगों की कम से कम सात बार आरती करनी चाहिए।

पूजा में उपयोग की हुई समस्त सामग्री को पूजा के बाद घर में रखना शुभ नहीं माना जाता है, अतः पूजा के बाद जो भी सामग्री हो यदि वह उपयोगी हो तो उसे ब्राह्मण को दान कर दें और जो उपयोगी ना हो उसे तुरंत नदी में प्रवाहित कर देना चाहिए।

पूजा मे जल का पात्र किस तरफ रखे  

जहाँ तक संभव हो पूजा करने के लिए पूर्व दिशा मे ही मुख करके बैठे और अपनी बांयी ओर घंटी, धुप वहीँ अपने दांयी ओर शंख, पूजन सामग्री और पूजा मे प्रयुक्त जलपात्र रखे

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पूजा के कितने प्रकार है

पूजा के मुख्य रूप से पंचोपचार,  दशोपचार, षोडशोपचार, द्वात्रिशोपचार, चतुषष्ठीपचार  और एकोद्वात्रिशोपचार यह छह प्रकार है। इनके अतिरिक्त मानस पूजा भी होती है जिसे अंतर्मन के द्वारा की जाती है, धर्म शास्त्रों के अनुसार यह मानस पूजा या मानसिक पूजा बहुत ही शक्तिशाली एवं फलदायक है।

पूजा करते समय क्यों आते है आंसू

पूजा करते समय यदि आंसू आते हैं तो यह इस बात का संकेत है कि आप पूर्ण रूप से शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से पूजा में लीन हो चुके हैं। यदि पूजा के दौरान भगवान से भाव विभोर होकर जुड़ जाते हैं तो भी पूजा के दौरान आंसू आते हैं। यदि कोई मनोकामना स्वीकार हो जाती है या भगवान कोई संकेत दे रहे होते हैं तो भी पूजा के दौरान आंसू आते हैं।

पूजा करते समय फूल का गिरना

पूजा करते समय फूल का गिरना बहुत ही शुभ और अच्छा संकेत माना जाता है। पूजा के दौरान फूल गिरना इस बात का संकेत है कि आप की पूजा ईश्वर ने स्वीकार कर ली है। अनेक बार भगवान से मन्नत मांग कर पुष्प माला चढ़ाते हैं इसके दौरान पुष्प गिरता है तो यह संकेत है कि आपकी वह मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी।


पूजा के दौरान दीपक की ज्योति का बढ़ना या अग्नि का बढ़ना

पूजा के दौरान यदि पूजा में प्रयुक्त दीपक की ज्योति बढ़ने लगे या अग्नि कुछ ज्यादा ही प्रकाश में होने लगे तो यह इस बात का संकेत है कि भगवान भक्ति और पूजा से प्रसन्न है।

पूजा करते समय छींक आना

एक या दो छींक आना तो स्वाभाविक है लेकिन शास्त्रों के अनुसार पूजा करते समय एक या दो से अधिक छींके आना शुभ नहीं है। इसका यह अर्थ भी है कि आप तन मन धन से पूजा नहीं कर रहे हैं जिससे भगवान आप से संतुष्ट नहीं है। पूजा के दौरान बार बार छींक आना इस बात का संकेत है कि कहीं ना कहीं आपके स्वास्थ्य में गिरावट होने वाली है।

पूजा करते समय उबासी आना

पूजा के दौरान उबासी या नींद आना इस बात का संकेत है कि, उस समय कोई अन्य एनर्जी आपके आस-पास मौजूद है। पूजा करते समय उबासी आना या नींद आना इस बात का संकेत है कि आप पूर्ण रूप से और सच्चे मन से पूजा में सम्मिलित नहीं है। आपका शरीर तो उस पूजा में उपस्थित है लेकिन आपका मन अन्य कहीं घूम रहा है। यदि पूजा के दौरान आपके मन में अन्य विचार घूम रहे हैं तो जमाई यह नींद आना स्वाभाविक है।

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