27 July, 2020

धौला गुजरी (Dhaula Gujari) - इतिहास के पन्नो की अभूतपूर्व वीरांगना


भारतीय इतिहास में अनेक ऐसी गौरवपूर्ण गाथाएं भरी पड़ी है जिनका वर्णन बहुत ही कम सुनने और पढ़ने को मिलता है। इतिहास में केवल वीर पुरुषों की ही गाथाएं नहीं है बल्कि बहुत सी वीरांगनाओं की गाथाएं भी है जैसे झांसी की रानी अहिल्याबाई होलकर आदि। ऐसी ही एक वीरांगना थी धौला गुजरी।

धौला गुजरी कौन थी (Dhaula gujari kaun thi)

धौला गुजरी एक ऐसी हिन्दू वीरांगना थी जिसने हिंदू मुस्लिम दंगे में कमजोर पड़ते हिंदुओं में एक नए साहस को भर दिया था और वह खुद भाला लेकर मुस्लिम हमलावरों पर टूट पड़ी थी। इस दंगे में धौला गुजरी के कंधे में गोली लगने से वह घायल हो गई थी लेकिन अपने अदम्य साहस और पराक्रम के कारण उसने मुस्लिम आक्रमणकारियों को भागने पर मजबूर कर दिया ।

धौला गुजरी कहाँ की रहने वाली थी (Dhaula gujari kaha rahti thi)

धौला गुजरी जेवर के पास रायपुर गांव की रहने वाली थी जिनकी लंबाई लगभग 6 फीट थी। गौर वर्ण की धौला गुजरी का बिधुरी गोत्र से थी। धोला गुजरी का विवाह  गुलावद गांव के बुंठा छावड़ी गुर्जर से हुआ था।

धौला गुजरी का इतिहास (Dhaula gujari ka itihas) {History of Dhaula gujari)


        1947 में हिंदुस्तान का नया इतिहास लिखा गया था जिसमें हिंदुस्तान ने अंग्रेजों से स्वतंत्रता हासिल की, लेकिन 1947 में भारत-पाकिस्तान का बटवारा भी हुआ था इस बंटवारे के कारण भारत के अनेक हिस्सों में हिंदू मुस्लिम दंगे हो गए थे। बंटवारे से पूर्व भी भारत-पाकिस्तान के विभाजन के लिए अनेक जगहों पर हिंदू मुस्लिम दंगे हो रहे थे।

  1947 के ज्येष्ठ दशहरे के अगले दिन एकादशी को पलवल से पूर्व की दिशा में गुलावद नाम के गांव में एक भयंकर हिंदू मुस्लिम दंगा हुआ। मुस्लिम आक्रमणकारियों ने योजना बनाकर गुलावद गांव में आक्रमण कर दिया था, इस दंगे में एक पत्थर लाठियां तथा बल्लमो के अतिरिक्त बंदूकों का भी उपयोग किया गया था। इस दंगे में हिंदुओं की संख्या मुसलमानों की संख्या से कुछ अधिक तो थी लेकिन उनके पास हथियार नहीं थे वही मुसलमान पहले से की योजना बना कर आए थे जिससे उनके पास हथियार थे और बंदूकों की संख्या भी अधिक थी।

 इस दंगे में मुसलमानों के पास हथियार होने के कारण हिंदू पराजित होकर भागने लगे और मैदान छोड़ने लगे। पास ही एक कुए पर धौला गुजरी पानी भरने आई हुई थी इस दंगे को देखकर वह पानी भरकर ले जा कर घायल हिंदुओं को पिला रही थी। जिस स्थान से धौला गुजरी पानी लाकर हिंदुओं को पिला रही थी उस स्थान पर भी कुछ आक्रमणकारी आकर छिप गए थे।

हिंदुओं को मैदान छोड़ते देख वीरांगना धौला गुजरी रोष से भर गई और स्वयं मकान की छत पर चढ़कर ऊपर से मुस्लिम बंदूकधारियों के सरदार को लक्ष्य करके इतना तेज ईट से प्रहार किया कि सीधी मुस्लिम सरदार के सीने में लगी और वह वहीं पर धराशायी होकर पलभर में 72 हूरों के पास पहुंच गया। सरदार के मरने से अन्य मुस्लिम हमलावर भागने लगे जिससे धौला गुजरी ने हिंदुओ को भागते हुए हमलावरों का पीछा करने के लिए ललकारा और खुद एक भाला उठाकर उन पर सिंहनी की भांति टूट पड़ी। धौला गुजरी ने भाले से ऐसे प्रहार किए कि कुछ अन्य आक्रमणकारी भी घायल होकर गिर पड़े।

इस दृश्य और धौला गुजरी के इस अदम्य साहस से हिंदू लोगों में एक नए साहस का संचार हो गया और वे आक्रमण करने वालों पर भूखे शेरों की तरह टूट पड़े। हिंदुओं के इस हमले से मुस्लिम आक्रमणकारी बहुत घायल हुए और मैदान छोड़कर भाग गए। धौला गुजरी की वीरता, साहस तथा पराक्रम के कारण गुलावद गांव की मुस्लिम आक्रमणकारियों से रक्षा हो गई। इस दंगे में धौला गुजरी भी घायल हो गई और उनके बाएं कंधे के नीचे एक गोली भी लगी लेकिन समय पर उपचार होने के कारण उन्हें बचा लिया गया।

सरदार वल्लभ भाई पटेल ने किया सम्मानित

  15 अगस्त 1947 को भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र हो गया था ।स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात आसपास के इलाके वालों तथा कांग्रेस कमेटी के अनुरोध पर सरदार वल्लभभाई पटेल अक्टूबर महीने में पलवल होते हुए होडल आए थे। इस अवसर पर एक सम्मान समारोह आयोजित हुआ था जहां पर धौला गुजरी को स-सम्मान रथ में बिठाकर सरदार पटेल के सामने उपस्थित किया गया था। सरदार पटेल ने धौला गुजरी की वीरता की प्रशंसा करते हुए यह कहा था कि

            " जिस इलाके में धौला गुजरी जैसी वीर महिलाएं रहती हो वहां के पुरुष मुझसे सहायता मांगे यह ठीक नहीं लगता। आप झगड़े ना करें, बहादुरी से रहे मैं अपना कर्तव्य भली-भांति समझता हूं। जो मुसलमान मुस्लिम लीग को वोट देते रहे हैं और पाकिस्तान जाना जाते हैं वह जाए, जो यहां रहना चाहते हैं उनकी हम रक्षा करेंगे, किंतु जो लोग गुंडागिरी करते हैं उन्हें कुचल दिया जाएगा। यह ना भूले कि सरकार के हाथ बड़े लंबे हैं।"


धौला गुजरी को सरकार द्वारा मिला पारितोषिक

धौला गुजरी की सरकार द्वारा हुई प्रशंसा से प्रोत्साहित होकर पंजाब सरकार ने उसकी वीरता और अदम्य साहस के उपलक्ष में 1000 रुपए का पारितोषिक दिया। उस समय ₹1000 का पारितोषिक मिलना अपने आप में एक बहुत बड़ा सम्मान था।

धौला गुजरी की मृत्यु

इस दंगे के 4 साल बाद धौला गुजरी की मृत्यु हो गई थी, धौला गुजरी के 6 बेटियां थी लेकिन कोई बेटा नहीं था।

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